Smarangatha

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Smarangatha

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Author: G N Dandekar translated Kashinath Joshi

Availability: 5 in stock

Pages: 402

Year: 1991

Binding: Hardbound

ISBN: 817201094X

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

स्मरणगाथा

प्रख्यात मराठी साहित्यकार गो. नी. दांडेकर ने अपने बहु आयामी लेखन से मराठी साहित्य की असीम सेवा की है। उन्होंने पाँच ऐतिहासिक उपन्यास लिखकर महाराष्ट्र के शिव-काल को विलक्षण जीवन्त रुप में साकार किया है। ज्ञानेश्वर, तुकाराम, रामदास जैसे महान सन्‍तों की जीवनियों को उपन्यास के माध्यम से प्रस्तुत कर उन्होंने मनुष्य की ऊर्ध्वगामी शक्ति के मूर्त रूप को उभारा है। मराठी की अनेक बोलियों का प्रयोग कर महाराष्ट्र की ग्रामीण जनता की प्रकृति ओर स्थिति को प्रस्तुत किया है। कभी पौराणिक वातावरण की चेतना को उन्होंने पकड़ा है तो कभी सामाजिक जीवन की व्यथा को वाणी दी। अनेक नाटक, ललित निबंध, कहानियां लिखकर उन्होंने मराठी वाड्मय को समृद्ध किया है। भारतीय संस्कृति, भारतीय जनमानस और भारतीय स्त्री के तेजस्वी रूपों को अभिव्यक्ति देकर दांडेकरजी ने महाराष्ट्र के किशोरों, युवकों, वयस्कों-सभी में अस्मिता जगाने का प्रयास किया है।

ज्ञातव्य हो कि दांडेकरजी को विधिवत्‌ अध्ययन की सीढ़ियाँ चढ़ने का भाग्य नहीं मिला। फिर भी ऐसा विलक्षण, प्रतिभा – समृद्ध लेखन उन्होंने कैसे किया ? इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने अपने ‘कुण्या एकाची भ्रमणगाथा’ और ‘स्मरणगाथा’ इन दो ग्रंथों के माध्यम से स्वयं ही दिया है।

लीक से हटकर जीवन जीनेवाले आवारा परंतु महान जीवन मूल्यों से प्रतिबद्ध व्यक्ति की यह स्मरण श्रृंखला है, सृष्टि को आत्मसात करने के इरादे से चल पड़े विलक्षण मेधावी व्यक्ति की गाथा है। एक अभावग्रस्त ब्राह्मण परिवार का लड़का अपनी आंतरिक ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों के तक़ाजों पर राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए घर से निकल भागता है और आंदोलन के मंद पड़ जाने पर जीवन की ऊबड़खाबड़ भूमि पर हिचकोले खाता हुआ जीने को बाध्य हो जाता है। जीवन की नियतिगामी राहों पर भटकने को विवश होते हुए भी हर बार आंतरिक आत्मशक्ति के बल पर अपने अस्तित्व और स्वत्व को बचाता है। विरक्ति के बहाने अपने शरीर को भयानक पीड़ा देता है, नर्मदा परिक्रमा करते समय आसक्ति और विरक्ति के इन्द्र में डूबता उतरता है।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

1991

Pulisher

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