Swayamsiddha

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Swayamsiddha

Swayamsiddha

150.00 128.00

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150.00 128.00

Author: Shivani

Availability: 5 in stock

Pages: 127

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9788183611268

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

स्वयंसिद्धा

जानबूझकर ही माधवी ने उस बार उस मनहूस तराई स्थित इलाके का दौरा किया था। मन की कितनी अशान्त तरंगों की आवाज को आज वह स्वयं उस कछार पर पटकने को व्याकुल हो उठी थी। नहीं तो भला गर्मी में हलद्वानी का दौरा कोई उस जैसी वरिष्ठ अफसर कर सकती थी ? जाना ही होता तो नैनीताल चली जाती, या रानीखेत, या अल्मोड़ा  ! पूरा उत्तराखंड ही तो अब उसकी मुट्ठी में बंद था। पद के गौरव ने इधर उसके अहंकारी स्वभाव को और भी अहंकारी बना दिया था। कहीं पढ़ा कि भारत के भूतपूर्व वायसराय माउण्टबेटन जब भी भारत आते हैं, उस कमरे में एकान्त के कुछ क्षण अवश्य बिताते हैं, जहाँ उनकी एडविना से प्रथम प्रणयस्मृति भी क्या आज उसे यहाँ नहीं खींच लाई थी ? किन्तु चाहने पर भी वह क्या आज उस कमरे की देहरी लाँघ पा रही थी ?

‘‘मेम साहब, चाय ले आऊँ ?’’ इंस्पेक्शन हाउस के उत्साही चपरासी ने पर्दा उठाकर झाँका और वह चौंक पड़ी। एक क्षण को चेहरे पर उतर आई मधुर स्मृतियों की रेखाएँ विलुप्त हो गईं। एक बार वह रूखी, कर्मठ रौबदार अफसर बन गई—‘‘हाँ-हाँ, जल्दी ले आओ, हमें बहार जाना है।’’

चपरासी के जाते ही उसने हाथ मुँह धोया और दर्पण के सम्मुख खड़ी हो गई। बड़ी ममता से उसने अपने क्लांत चेहरे को देखा। इधर-ही-इधर कितनी नई रेखाओं का जाल चेहरे पर फैल गया था। चश्मा उसने नीचे रख दिया। पूरे चेहरे पर पफ फेरा। बाल खोलकर कंघी की, जूड़ा बनाया और एक बार फिर अपने सँवरे प्रतिबिम्ब को देखा।

‘‘चाय आ गई, सरकार !’ मनहूस गँवार चपरासी ने उसे एक बार फिर चौंका दिया। अपना चपरासी होता, तो बिना पूछे कमरे के अन्दर ऐसे चले आने के लिए वह कान खींच लेती।

‘‘रख दो, और हमारे ड्राइवर से कह दो, गाड़ी निकाल ले।’’ एक–प्याली चाय ने उसे चैतन्य किया और वह बटुए से उसी मुड़ी-तुड़ी चिट्ठी को निकालकर फिर पढ़ने लगी, जिसे पिछले चार दिनों में वह न जाने कितनी बार पढ़ चुकी थी। बीस वर्षों में उसके पिता का यह पहला पत्र था :

‘‘माधवी,

तुमसे कुछ कहने का अब अधिकार नहीं रहा। फिर भी, कर्तव्यवश, आज तुम्हें लिखना जरूरी हो गया। मैंने तुम्हारा कन्यादान किया था। तुम्हारे उस श्लोक की आवृत्ति का साक्षी मैं भी हूँ, ‘आर्ते आर्ता भविष्यामि सुखदुः खनुगामिनी।’ आज कौस्तुभ मृत्युशय्या पर है। इसी से तुम्हारे कर्तव्य से, तुम्हें अवगत करना अपना भी कर्तव्य समझता हूँ।

-शिवदत्त’’

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Binding

Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

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