Tokri Mein Digant

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Tokri Mein Digant

Tokri Mein Digant

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250.00 195.00

Author: Anamika

Availability: 6 in stock

Pages: 183

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9789390971473

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

टोकरी में दिगन्त
अनामिका के नए संग्रह ‘टोकरी में दिगंत-थेरी गाथा : 2014’ को पूरा पढ़ जाने के बाद मेरे मन पर जो पहला प्रभाव पड़ा, वो यह कि यह पूरी काव्य-कृति एक लम्बी कविता है, जिसमें अनेक छोटे-छोटे दृश्य, प्रसंग और थेरियों के रूपक में लिपटी हुई हमारे समय की सामान्य स्त्रियाँ आती हैं। संग्रह के नाम में 2014 का जो तिथि-संकेत दिया गया है, मुझे लगता है कि पूरे संग्रह का बलाघात थेरी गाथा के बजाय इस समय-सन्दर्भ पर ही है। संग्रह के शुरू में एक छोटी-सी भूमिका है, जिसे कविताओं के साथ जोड़कर देखना चाहिए। बुद्ध अनेक कविताओं के केंद्र में हैं, जो बार-बार प्रश्नांकित भी होते हैं और बेशक एक रोशनी के रूप में स्वीकार्य भी।

इस नए संकलन में अनेक उद्धरणीय काव्यांश या पंक्तियाँ मिल सकती हैं, जो पाठक के मन में टिकी रह जाती हैं। बिना किसी तार्किक संयोजन के यह पूरा संग्रह एक ऐसे काव्य-फलक की तरह है, जिसके अंत को खुला छोड़ दिया गया है। स्वयं इसकी रचयिता के अनुसार ‘वर्तमान और अतीत, इतिहास और किंवदँतियाँ, कल्पना और यथार्थ यहाँ साथ-साथ घुमरी परैया-सा नाचते दीख सकते हैं।’ आज के स्त्री-लेखन की सुपरिचित धरा से अलग यह एक नई कल्पनात्मक सृष्टि है, जो अपनी पंक्तियों को पाठक पर बलात थोपने के बजाय उससे बोलती-बतियाती है, और ऐसा करते हुए वह चुपके से अपना आशय भी उसकी स्मृति में दर्ज करा देती है।

शायद यह एक नई काव्य-विधा है, जिसकी ओर काव्य-प्रेमियों का ध्यान जाएगा। समकालीन कविता के एक पाठक के रूप में मुझे लगा कि यह काव्य-कृति एक नई काव्य-भाषा की प्रस्तावना है, जो व्यंजन के कई बंद पड़े दरवाजों को खोलती है और यह सब कुछ घटित होता है एक स्थानीय केंद्र के चारों ओर। कविता की जानी-पहचानी दुनिया में यह सबाल्टर्न भावबोध का हस्तक्षेप है, जो अलक्षित नहीं जाएगा।

– केदारनाथ सिंह

 

अनुक्रम
भूमिका 5
पुरोवाक्‌
आम्रपाली 13
कूड़े में पन्नियाँ 15
थर्मामीटर 16
कीमोथेरेपी के बाद 17
अंक-1
थेरियों की बस्ती
इतिहास 23
गठरियाँ 24
तृष्णा थेरी 25
फिर बोली वह स्मृति थेरी 26
भाषा थेरी बोली 27
पीछे चली आई स्मृति थेरी फिर बोली चिन्दियाँ : क्षत-विक्षत कश्मीर की 28
सरहद से लल्लदेद बोल पड़ीं 29
वितृष्णा थेरी अब बोल पड़ी मेरे ही भीतर से 30
शान्ता थेरी बोली 33
सरला थेरी ने कहा 35
मुक्ता थेरी बोली 36
मृतकों के जूते : जिजीविषा थेरी बोली 38
मृत्युगन्‍ध पर फेनाइल : जिजीविषा थेरी फिर बोली 39
बसियारिन थेरी से बोली बूढ़ी घोड़ी 41
अर्थ वही जो इन शब्दों में समा जाएँ 41
दुख भी खुशी ही है, भन्ते 42
केतकी थेरिन 43
साझा स्पेस 44
मरती नहीं हैं उड़ानें 45
उत्पलवर्णा थेरीगाथा 46
मल्लिका थेरी 47
अभिरूपा थेरी 48
अजन्ता की गुफाएँ 49
गाथा कुछ अन्य थेरियों की 50
बोलीं सुमंगल माता 51
सुजाता थेरी 52
तिलोत्तमा थेरी 52
चम्पा थेरी 52
अंक-2
ये मुजफ्फरपुर नगरी है, सखियो
रॉन्ग नम्बर 57
वापसी 58
जच्चाघर की मोनकिया धाय उर्फ घोड़वावाली थेरिन : जन्नत के बाहर 59
बेखबरी : लम्बी बीमारी के बाद की तन्द्रा में अतिवादी की माँ 60
हरिसभा चौक : जन्म का पड़ाव 61
ट्रंककॉल 63
कचकारा 65
साइकिल 67
भूमंडल 68
गणिका गली 70
जड़ी-बूटियाँ 71
नायिका भेद : नवेलिका थेरी बोली लंगट सिंह कॉलेज के आचार्य से 73
चुड़ैल-गली 75
अन्ना केरिनिना’ : चैपमैन बहूद्देशीय कन्या विद्यालय के पुस्तकालय में 76
चल पुस्तकालय 78
नारायण महतो का रिक्शा-रथ 79
मंडी की आचार-संहिता 80
शहीद चौक का अशोक स्तम्भ 81
सभाभवन की दरी : महंत दर्शनदास महिला महाविद्यालय, बेला रोड 82
जकथक : सेंट फ्रांसिस जेवियर्स का चौराहा 83
डर-अपडर ही धर्म का घर है : एक पुराना सहपाठी बोल पड़ा 85
रस्सियाँ : आम गोला चौक 87
टूटी हुई छतरी 89
सार्वजनिक हत्या : भगवान बाजार 90
बूढ़े गृहस्थ और मशीनें 91
अनुत्तरित प्रेम : रिक्शे पर गुल्ली से फेंका गया पहला प्रेमपत्र 93
चौक चक्कर की वो फुर्सत बुआ 94
उमा दी : मेरी शिक्षिका 95
द्वारछेंकाई : पुरना कोहबर 96
प्रोफेसर पद्मप्रिय थेरी, एम.एल.सी. 96
शिखा सक्सेना, प्रथम वर्ष, एम.आई.टी. : वितृष्णा के शरबत की रेसिपी 97
चोर 98
भेड़िया 99
एक पुराना सहपाठी 100
ध्यान शिविर : अघोरिया बाजार 101
मुझसे भारी मेरा बस्ता : दाता राजेन्द्रशाह के मजार पर उनका नन्हा नवासा 103
वृद्ध दम्पती का प्रेमालाप : मिठनपुरा, मुजफ्फरपुर 104
प्रसूति-गृह में पिता : एक पुराने छात्र के लिए जो अब नया पिता है 105
सत्रह बरस का प्रतियोगी परीक्षार्थी : ‘माँ, यह दुख क्यों होता है ?’ 107
इतिहास : क्रान्ति चौक 110
इस्माइल खाँ एंड संस, इराक रिर्टंड : युद्ध विराम 111
मातृभाषा : आई. टी. में कार्यरत पुराने सहपाठी के साथ एक शाम 112
मिठनपुरा-1 : भींगी बरसाती 115
मिठनपुरा-2 : स्त्री-सुबोधिनी 116
अंक-3
चलो दिल्‍ली, चलो दिल्‍ली वैशाली एक्सप्रेस : 2009
खिचड़ी 119
स्त्री कवियों की जहालतें 120
पगड़ी 120
ध’ से धमाका 121
मेट्रो 123
गृहलक्ष्मी 124
परचून 125
लोकतंत्र 125
एक पिता की मुश्किलें 126
स्वाधीनता-सेनानी 127
नशेड़ी 128
बन्दीगृह 129
नमस्कार, दो हजार चौंसठ 130
पूर्ण ग्रहण 131
मानिनी 132
प्रेम 133
प्रेम इंटरनेट पर 134
पुरुष मित्र 136
महानगर में अम्मा 137
खेद-पत्र 137
करुणा थेरी ने कहा 139
नमक 140
सुपारी 141
आधार कार्ड 142
नसीहत 144
थेरी गाथा : तृष्णा नदी 146
महाभिषग 149
दुख की प्रजातियाँ 151
वापसी 153
हवामहल 154


आम्रपाली

था आम्रपाली का घर

मेरी ननिहाल के उत्तर

आज भी हर पूनो की रात

खाली कटोरा लिये हाथ

गुजरती है वैशाली के खँडहरों से

बौद्धभिक्षुणी आम्रपाली।

अगल-बगल नहीं देखती,

चलती है सीधी-मानो खुद से बातें करती-

शरदकाल में जैसे

(कमंडल-वमंडल बनाने की खातिर)

पकने को छोड़ दी जाती है

लतर में ही लौकी-

पक रही है मेरी हर मांसपेशी,

खदर-बदर है मेरे भीतर का

हहाता हुआ सत!

सूखती-टटाती हुई

हड्डियाँ मेरी

मरे कबूतर-जैसी

इधर-उधर फेंकी हुईं मुझमें।

सोचती हूँ-क्या वो मैं ही थी-

नगरवधू-बज्जिसंघ के बाहर के लोग भी जिसकी

एक झलक को तरसते थे ?

वे मेरे सन-से सफेद बाल

थे कभी भौंरे के रंग के, कहते हैं लोग,

 

 

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Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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