Viraajbahu

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Viraajbahu

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Author: Sharat Chandra Chattopadhyay

Availability: 5 in stock

Pages: 116

Year: 2012

Binding: Hardbound

ISBN: 9788170167426

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

विराजबहू

दो शब्द

स्वामि-भक्ति का पाठ पढ़ाकर पुरुष ने नारी को अपने हाथ का खिलौना बना लिया। विराज भी ऐसे ही वातावरण में पली थी। उसने अपने पति को ही सर्वस्व मान लिया था उसने स्वयं दु:ख बर्दाश्त किया, परन्तु पति को सुखी रखने की हर तरह से चेष्टा की।

लेकिन इस सबके बदले में उसे मिला क्या ?

लांछना और मार।

तीस दिन की भूखी-प्यासी-बुखार से चूर विराज, अपने पति नीलांबर के लिए बरसात की अंधेरी रात में भीगती हुई, चावल की भीख मांगने गयी।

…..और नीलांबर ने उसके सतीत्व पर संदेह किया, उसे लांछना दी।…

विराज का स्वाभिमान जाग उठा। पति की गोद में सिर रखकर मरने की साध करने वाली विराज, अपने सर्वस्व को छोड़कर चल दी….और जब उसे अपना अन्त समय दिखाई दिया, तो फिर वह पति के समीप पहुंचने को तड़प उठी।

उस सती-साधवी को पति का समीप्य मिला अवश्य-लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी- पति-सुख कुछ समय को पुन: प्राप्त कर बारम्बार पद-धूलि माथे से लगाकर विराज अपने विराज अपने सारे दु:खों को भूल गयीं। अन्तिम क्षण अपने पति से कहती गयी- ‘मेरी देह शुद्ध है, निष्पाप है ! अब मैं चलती हूं-जाकर तुम्हारी राह देखती रहूंगी !’

बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के ‘विराज बोउ’ का हिन्दी अनुवाद है यह विराज बहू !…….

 – अनुवादक

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2012

Pulisher

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