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Vishwa Mithak Saritsagar
₹3,000.00 ₹2,400.00
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₹3,000.00 ₹2,400.00
Author: Ramesh Kuntal Megh
Pages: 666
Year: 2015
Binding: Hardbound
ISBN: 9789350727478
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
विश्व मिथक सरित्सागर
इस एन्साइक्लोपीडिआई ग्रन्थ में कोई भी भ्रामक दावेदारी नहीं हुई है। वर्तमान में भी कोई कम्प्यूटर, डी-एन-ए, एल-एस-डी, विश्वमिथकयानों के ऐसे अलबेले नवोन्मेषक, कॉस्मिक विश्वरूपता की छाया तक नहीं छू पाये। इस प्रथम हंसगान-परक ग्रन्थ में मिथकायन (मिथोलॉजी) से प्रयाण करके मिथक-आलेखकारी (मिथोग्राफी) के प्रस्थानकलश की अभिष्ठापना है। इसके तीन ज्वलन्त नाभिक हैं-पाठ-संरचना एवं कूट। अतः नृतत्त्वशास्त्रा तथा एथनोग्राफी के लिए तो इसमें दुर्लभ खजशना है। अथच वास्तुशास्त्रा, समाजशास्त्रा, सौन्दर्यबोधशास्त्रा, समाजविज्ञानों के हाशियों पर भी मिथकों के नाना ‘पाठरूपों’ (भरतपाठ से लेकर उत्तर-आधुनिक पाठ) तथा ‘सामाजिक पंचांगों’ की अनुमिति हुई है।
विश्व के कोई पैंतीस देशों तथा आठ-दस पुराचीन सभ्यता संस्कृतियों के पटल एकवृत्त में गुँथे हैं। आद्यन्त एक महासूत्रा गूँज रहा है-‘‘विश्वमिथक के स्वप्न-समय में संसार एक था तथा मिथकीय मानस भी एकैक था।’’ इसी युग्म से समसमय तक मानव का महाज्ञान तथा महाभाव खुल-खुल पड़ता है। इस ग्रन्थ में मिथक-आलेखकारी के दो समानान्तर तथा समावेशी आयाम हैं – एक क्षेत्रा-सभ्यता-संस्कृति- अनुजाति-नस्ल के पैटर्न, तथा दूसरा, चित्रामालाओं वाली बहुकालिकता। फलतः शैलचित्रों से लेकर ओशेनिया और मेसोपोटामिआ से अंगकोरवाट तक का हजारों वर्षों का समय लक्ष्य रहा है। यह ग्रन्थ उस ‘महत्’ में, प्राक-पुरा काल में भी, सृष्टि, मिथक, भाषा, कबीलों गोत्रों-गोष्ठों का अनन्त यात्राी है। वही ऋत् है। वही अमृत है। वही जैविकता तथा भौतिकता तथा सच्चिदानन्द है।
अतः आधुनिक काल में हम, मिथक केन्द्रित पाँच कलाकृतियों के माध्यम से भी आगे, ‘चे’ ग्वेरा, उटामारो, डिएगो राइवेरा, भगतसिंह तक में उसकी परिणति की पहचान करते हैं। ग्रन्थ में सर्वत्रा मिथभौगोलिक मानचित्रों, समय-सारणियों, तालिकाओं, दुर्लभ चित्राफलकों तथा (स्वयं र.कुं. मेघ द्वारा रचे गये) अनपुम अतुल्य रेखाचित्रों की मिथक-आलेखकारी का तीसरा (अन्तर्निहित) आयाम भी झिलमिलाता-जगमगाता है। अतएव हरमनपिआरे हमारे साथियो, साथिनो! चलिये, इस अनादि-अनन्त यात्रा की खोजों में। न्यौता तथा चुनौती कुबूल करके अगली मंजिलें आपको ही खोजनी होंगीµमानवता, संसार, देश, भारत तथा हिन्दी के लिए!!
Authors | |
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Binding | Hardbound |
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Language | Hindi |
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Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
रमेश कुंतल मेघ
रमेश कुंतल मेघ पचहत्तर पार। जाति-धर्म-प्रान्त से मुक्त। देश-विदेश के चौदह-सोलह शहरों के वसनीक यायावर। भौतिक-गणित-रसायन शास्त्र त्रयी में बी.एस.सी. (इलाहाबाद), फिर साहित्य में पी-एच.डी. (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी)। अध्यापन : बिहार यूनिवर्सिटी (आरा), पंजाब यूनिवर्सिटी (चंडीगढ़), गुरुनानकदेव यूनिवर्सिटी (अमृतसर), यूनिवर्सिटी ऑफ आरकंसास पाइनब्लक (अमेरिका)। कार्ल मार्क्स के ध्यान-शिष्य, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अकिंचन शिष्य। सौन्दर्यबोध शास्त्र, देहभाषा, मिथक आलेखकार, समाजवैज्ञानिक वैश्विक दृष्टिकोण के विनायक – अनुगामी, आलोचिन्तक।
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