Yeh Dukh : Yeh Jeevan

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Yeh Dukh : Yeh Jeevan

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Author: Taslima Nasrin

Availability: 5 in stock

Pages: 148

Year: 2013

Binding: Hardbound

ISBN: 9788170554431

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

यह दुख : यह जीवन

अनुक्रम
कहानी 9
बेझिझक 10
चिथड़ा-चिथड़ा ये मन 11
खण्डित बांग्लादेश 12
कत्थई किताब 14
गौरी नहीं रही 15
कम्पन-1 17
फूस की लड़की 18
झुकाव 19
लज्जा, 7 दिसम्बर, ’92 20
पानी में तैरना 21
कम्पन-2 22
बदनसीब 23
फिर देखेंगे 24
पुरुषोत्तम 26
कम्पन-3 27
मसजिद-मन्दिर 28
चाह 29
कम्पन-4 30
इसराफिल को बुखार है 31
सतीत्व 32
धुआँ 33
जलपर्व 34
नींद उड़ानेवाली 35
मज़ार 40
समारोह 41
धोखा 42
उद्यान-सुन्दरी 43
जरा ठहरो 46
अकल्याण 47
चाबुक 49
विसर्जन 50
घर चलोगे सुरंजन ? 52
कम्पन-5 54
खलिहान 55
निर्भय 56
बाँसुरी 57
पुरुषों की दान-दक्षिणा 58
कम्पन-6 59
दुःसह दुःख 60
गलतफ़हमी 61
विष और विषाद में बीतता है पूरा दिन 62
दुखियारी लड़की 64
ऐसी कोई कसम नहीं दी 66
कम्पन-7 67
7 मार्च, 497 68
बादल और चाँद की आँख-मिचौली 69
पिता, पति, पुत्र 71
इतना अहंकार भला क्‍यों ? 72
कम्पन-8 74
धूसर शहर 75
मृत्युदण्ड 78
मनुष्य यह शब्द मुझे बहुत उद्वेलित करता है 80
पराधीनता 82
कम्पन-9 84
छोड़ गये हो मुझे, देखती हूँ, एक क़दम भी आगे नहीं बढ़े 85
हाथ 86
नूरजहाँ 87
अस्वीकार 88
धर्मवाद 89
प्ले ब्वॉय 91
कम्पन-10 92
ग़रीबी 93
प्यार की कोई उम्र नहीं 95
प्रिय कलकत्ता 96
अगर तुम आओ 100
अंतर 101
जाऊँगी, अवश्य जाऊँगी 102
जो पति प्रेमी नहीं, उसे… 104
कम्पन-11 105
अवगाहन 106
यात्रा 107
बीबी आयशा 108
प्यार में जी नहीं रमता आजकल 109
तोप दागना 110
दीर्घ पथ पर जाऊँगी 111
कीड़े-मकौड़ों की कहानी 112
अनुचरी 114
प्रेरित नारी 115
बहुगमन 116
निर्बोधों का देश 117
प्रश्न 118
1500 बंगाब्द 119
कवि निर्मलेन्दु गुण 122
पानी में तिरना 124
चाहत 125
बहुत देखा है 127
समझौता 128
साथी 129
लड़कीपन 130
जीवन कभी बाएँ हाथ में, कभी दाएँ में 133
टापू 135
ईशनिन्दा-क़ानून 137
इस घर से उस घर 139
पिता को पत्र 141

कहानी

निहायत सीधे-सादे दीख पड़नेवाले एक लड़के ने

एक दिन मुझसे कहा-मैं बहुत दुखी हूँ

उसके घने बालों को उँगलियों से सहलाते हुए

मैंने कहा-मैदान में बरस रही है सफ़ेद चाँदनी

चलो भीगें

बादलों से घिरी भोर में

किसी अरण्य की सैर को चलें

शीतलक्षा में उलटी देह तैरें।

लड़के ने कहा-मुझे भूख बहुत लगती है आजकल

मैंने उसे खाने को दिया सरसों में पका हिल्सा

कज़री मछली का कोफ्ता, झींगा की मलाईकरी

और फिर साबुत मुर्गा रोस्ट

खाना खाने के बाद बढ़ाया-तबक लगा पान।

खाना खत्म हुआ, रात में हम भीगते भी रहे चाँदनी में

सुबह अरण्य को भी किया गया पार, लड़का भी हुआ खुश

भरा पेट और मन लेकर दोपहर को

उसने कहा-अच्छा तो अब मैं चलूँ।

फिर एक दिन अचानक मैंने देखा

पड़ोस की किसी दूसरी लड़की को वह

अपने दुःख और भूख के बारे में बता रहा है

और वह किशोरी उसे पास बैठकर खिला रही है खाना।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2013

Pulisher

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