Zakhm Jitne The

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Zakhm Jitne The

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125.00 105.00

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125.00 105.00

Author: Nivedita

Availability: 5 in stock

Pages: 72

Year: 2013

Binding: Paperback

ISBN: 9789350726068

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

जख्म जितने थे

निवेदिता की कविताओं की सबसे बड़ी खूबी है अपने आसपास के जीवन को नयी नज़र, नये उल्लास और नयी लालसा से देखना जहाँ चिड़िया, आकाश, नदी, चाँद और सूरज अपनी अतिपरिचित प्राचीनता से मुक्त होकर मानो सृष्टि के आदिम, सर्वप्रथम बिम्बों की तरह प्रगट होते हैं। प्रेम, अनुराग और पूर्णता की आकांक्षा इन कविताओं की एक अतिरिक्त विशेषता है। यहाँ एक गहरा रोमान भी है जो जीवन से गहरे प्रेम से उत्पन्न होता है। निवेदिता की कविताएँ अस्मिता-सिद्धान्त की चौहद्दी में नहीं बँधी हैं। बल्कि वे सम्पूर्ण जीवन की, जीवन से गहरे राग और प्रत्येक क्षण और तृण के उत्सव की कविताएँ हैं।

इसीलिए इरोम शर्मीला पर लिखते हुए निवेदिता मुक्ति के स्वप्न को रेखांकित करते हुए भी मूलतः भूख और स्वाद की बात करती हैं – ‘खाने का स्वाद राख में बदल जाता है’ या ‘मैं धरती को कम्बल की तरह लपेट लेती हूँ’। यह एक नयी तरह की राजनीतिक कविता है जहाँ राजनीति भी भूख, स्वाद, वसन्त, कम्बल और नर्म गीली मिट्टी के जरिए अपने को व्यक्त करती है। ‘हर राह से फूटती है पगडंडी’ इस संग्रह की सर्वाधिक जटिल और संश्लिष्ट कविताओं में है जो एक साथ राजनीतिक विकल्प, मानव सम्बन्ध, प्रेम और अतीत की स्मृतियों का संयोजन करती है। निवेदिता का यह संग्रह निश्चय ही सहृदय पाठकों को आकर्षित करेगा और एक बार फिर कविता पढ़ते हुए उन्हें वो संगीत और रोमान मिलेगा जो कविता का सबसे खास गुण होता है।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2013

Pulisher

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