आलोचना अपूर्वानंद का व्यसन है। आलोचना अपने व्यापक अर्थ और आशय में। आलोचना का लक्ष्य पूरा मानवीय जीवन है, साहित्य जिसकी एक गतिविधि है। इसलिए शिक्षा, संस्कृति और राजनीति की आलोचना के बिना साहित्य की आलोचना संभव नहीं।
लेखक के साहित्यिक आलोचनात्मक निबंधों के दो संकलन, ‘सुंदर का स्वप्न’ और ‘साहित्य का एकांत’ प्रकाशित हैं। कुछ समय तक ‘आलोचना’ पत्रिका का संपादन।
पेशे से अध्यापक हैं। अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से संबद्ध हैं।
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