साहित्य-सेवा : आपने ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना करके हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाया। तेरह वर्ष की आयु में ही आपने उर्दू में एक उपन्यास लिखा ‘सरमाए नाज’। ऐतिहासिक उपन्यास रचना की ओर आपका झुकाव 1955-56 में हुआ। पहले ‘नालंदा’ की रचना हुई, फिर ‘शाहे अवध’ लिखा गया, इसके बाद ‘ओरछा की नर्तकी’, ‘मस्तानी’, ‘जाने आलम’, ‘नवाब बेमुल्क’ ‘बेगम हजरत महल’, ‘तानसेन’, ‘सुल्ताने मालवा’, ‘गुलफाम मंजिल’, ‘रक्त गंगा’, ‘परीखाना’ और ‘बाबा कहि कहि जाँहि’ की रचना की। ‘तपस्या’ नामक सामाजिक उपन्यास भी लिखा।
आपके ऐतिहासिक उपन्यासों की विशेषता यह है कि वे तथ्य और ऐतिहासिक घटना क्रम को तोड़ते नहीं, बल्कि उनके ही आधार पर पूरी कथा चलती है।
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