पद्मविभूषण प्रो. (डॉ.) लोकेशचंद्र भारतीय संस्कृति के विदेशों में प्रसार के एक अग्रणी उन्नायक हैं, जिन्होंने योरोप और एशिया के अनेक देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को उच्चतम सीमा तक पहुँचाया। संस्कृति विषयक 605 कृतियों के प्रणयनकर्ता तथा 400 से अधिक सांस्कृतिक शोध आलेखों के सर्जक प्रो. चंद्र को यदि ‘भारतीय संस्कृति का शलाका पुरुष’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
नालंदा विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त प्रो. चंद्र ने 1950 में हॉलैण्ड के यूत्रोख्त विश्वविद्यालय से डी.लिट् किया था। प्रख्यात भारतविद् आचार्य प्रो. रघुवीर के सुपुत्र प्रारंभ से ही एक सांस्कृतिक परिवेश में रहते हुए भारतीय भाषा और संस्कृति के वैश्विक, विशेषतया एशियाई, संबंधों के प्रति प्रवृत्त रहे तथा हिंदी, संस्कृत एवं पालि भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, जर्मन, तिब्बतन आदि लगभग बीस भाषाओं का पारायण किया। अंतर-सांस्कृतिक संबंधों के सिलसिले में एशिया, योरोप, अमेरिका महादेश के बीसेक देशों की यात्राएँ कीं। भारत की राज्यसभा के दो बार सदस्य (1974-86) रहे तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष रहकर (2014-17) सेवानिवृत्त हुए। संप्रति, एशिया की संस्कृतियों के अध्ययन की अग्रणी संस्था, ‘सरस्वती-विहार’ के अध्यक्ष हैं। दिल्ली में रहते हैं।
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