10 Pratinidhi Kahaniyan : Nirmal Verma
10 Pratinidhi Kahaniyan : Nirmal Verma
₹200.00 ₹160.00
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Author: Nirmal Verma
Pages: 128
Year: 2024
Binding: Paperback
ISBN: 9788170163749
Language: Hindi
Publisher: Kitabghar Prakashan
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Description
10 प्रतिनिधि कहानियाँ : निर्मल वर्मा
‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ सीरीज़ किताबघर प्रकाशन की एक महत्वाकांक्षी कथा-योजना है, जिसमें हिंदी कथा-जगत के सभी शीर्षस्थ कथाकारों को प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस सीरीज़ में सम्मिलित कहानीकारों से यह अपेक्षा की गई है कि वे अपने संपूर्ण कथा-दौर से उन दस कहानियों का चयन करें, जो पाठकों, समीक्षकों तथा संपादकों के लिए मील का पत्थर रही हों तथा वे कहानियाँ भी हों, जिनकी वजह से उन्हें स्वयं को भी ‘कहानीकार’ होने का अहसास बना रहा हो। भूमिका-स्वरूप कथाकार का एक वक्तव्य भी इस सीरीज़ के लिए आमंत्रित किया गया है, जिसमें प्रस्तुत कहानियों को प्रतिनिधित्व सौंपने की बात पर चर्चा करना अपेक्षित रहा है।
किताबघर प्रकाशन गौरवान्वित है कि इस सीरीज़ के लिए सभी कथाकारों का उसे सहज सहयोग मिला है। इस सीरीज़ के महत्त्वपूर्ण कथाकार निर्मल वर्मा ने प्रस्तुत संकलन में अपनी जिन दस कहानियों को प्रस्तुत किया है, वे हैं: ‘दहलीज’, ‘लवर्स’, ‘जलती झाड़ी’, ‘लंदन की एक रात’, ‘उनके कमरे’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’, ‘पिता और प्रेमी’, ‘वीकएंड’, ‘जिंदगी यहाँ और वहाँ’, तथा ‘आदमी और लड़की’।
हमें विश्वास है कि इस सीरीज़ के माध्यम से पाठक सुविख्यात कथाकार निर्मल वर्मा की प्रतिनिधि कहानियों को एक ही जिल्द में पाकर सुखद पाठकीय संतोष का अनुभव करेंगे।
भूमिका
पिछले तीस वर्षों के दौरान लिखी गई कहानियों में से दस कहानियाँ चुनना काफी हद तक दुष्कर कार्य है। कहना आसान होता है कि वे ‘श्रेष्ठ’ कहानियाँ हैं, किन्तु ‘श्रेष्ठता’ की कसौटी लेखक के मन में एक जैसी नहीं रहती। एक समय में ये कहानियाँ इतनी ‘उतुकृष्ट’ मानी जाती थीं, समय की धूल में वे अब काफी मलिन जान पड़ती हैं और अब तक जो कहानियाँ ‘उपेक्षित’ थीं, वे सहसा एक नया जीवन प्राप्त कर लेती हैं। इधर कुछ ‘प्रतिनिधि’ कहानियों के संकलन प्रकाशित करने का रिवाज भी चला है; यह शायद सबसे संदिग्ध कसौटी है। कथाकार का संसार इतनी परस्पर विरोधी मनःस्थितियों के तंतुजाल से बना होता है, कि शायद ही कोई कहानी उसका सही और सटीक ‘प्रतिनिधित्व’ कर सके। इन सीमाओं के बावजूद कुछ ऐसे ‘आग्रह’ अथवा चिंताए अथवा आप चाहें तो कह सकते हैं, कुछ ऐसी गुत्थियाँ और गाठे होती हैं, जिन्हें एक लेखक बार-बार अपनी कहानियों में दोहराता है, उलझाता है, सुलझाने का रास्ता खोजता है। ये कहानियाँ लेखक का ‘हस्ताक्षर’ हैं, जिसे हम एक वाक्य पढ़ते ही पहचान लेते हैं। संभव है, यह ‘हस्ताक्षर’ आपको इन दस कहानियों में भी दिखाई दे।
इस संग्रह की पहली कहानी 1955 और अंतिम 1980 के आसपास लिखी गई थी। पच्चीस-तीस वर्षों की लंबी कथा-यात्रा में मेरे भीतर जो अदृश्य परिवर्तन चलते रहे, उनकी एक दृश्य छाया शायद आपको इन कहानियों में मिलेगी। मुझे नहीं मालूम कि इस यात्रा को कहाँ तक अलग-अलग स्टेशनों अथवा पड़ावों द्वारा अंकित किया जा सकता है, सिर्फ इतना कहा जा सकता है, कि हर कहानी में चाहे ‘दुनिया का यथार्थ’ एक जैसा रहता हो-या दिखाई देता हो-उसे देखने, जीने, परखने की जगह थोड़ी ‘शिष्ट’ हो जाती है, सत्य को चखने का स्वाद थोड़ा बदल जाता है। क्या इसे हम एक लेखक का ‘विकास’ कह सकते हैं ? मुझे डर है, इन दस कहानियों में परिवर्तन के चिन्ह भले ही चीन्हे जा सकें, विकास या क्षति के कारण आँकना मुश्किल होगा। मेरे लिए। संभव है, एक वस्तुपरक आलोचक के लिए यह काम उतना असाध्य नहीं होगा।
अक्सर देखा गया है, कि एक लेखक अपनी रचनाओं का विश्वनीय पक्ष नहीं होता।
कभी-कभी तो उसे अपनी हर कहानी पर शर्म सी महसूस होती है और कभी उसे इतना गर्व महसूस होता है कि पाठकों को उसके लिए शर्म आती है ! आदर्श स्थिति तो यह है कि काट-छाँट को हृदयहीन शल्य-क्रिया किसी क्रूर आलोचक, निर्दय संपादक या विवेकशील पाठक पर छोड़ दी जाए, और यदि वह संभव न हो तो स्वयं लेखक को अपने भीतर इतनी वस्तुपरकता और विवेक समेटने की यथार्थ होनी चाहिए कि वह खुद अपने कृतित्व को अपने से बाहर देख सके। इस संकलन की कहानियों का चयन करते समय कहाँ तक मैं यह तटस्थता बरत सका हूँ, इसका निर्णय तो पाठक ही करेंगे। अपनी ओर से यह कोशिश जरूर की है, कि इस संकलन में वे ही कहानियाँ न दी जाएँ, या कम-से-कम दी जाएँ, जो दूसरे संकलनों में आ चुकी हैं। शायद यही इसकी प्रमुख विशेषता भी है-पहली बार पाठकों को एक जिल्द में कुछ ऐसी कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी जो अन्य संकलनों में आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं।
14A/20, वेस्टर्न एक्सटेंशन एरिया नई दिल्ली
निर्मल वर्मा
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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