- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
आवाज
कथा के दायरे से बाहर मैत्रेयी पुष्पा का सजग चिंतक रूप हिन्दी की महाश्वेता देवी का है। वह स्त्री विषयक चिंतन में वायवीय भाषा के संजाल में न फंसकर अपनी सहज संप्रेष्णीय जबान में ऐसे बात करती है कि आम स्त्रियां भी यह पहचान सकें कि उनके बारे में किया जा रहा चिंतन क्या है ? वे उससे न सिर्फ विचार समृद्ध होती हैं, बल्कि स्वयं भी उस महायुद्ध में सहभागी हो जाती हैं जो उनके विरुद्ध लड़ा जा रहा है।
व्यवस्था हो या समाज, परिवार हो या संस्थाएं, मैत्रेयीजी को कहीं भी किसी रूप में स्त्री विरोधी वातावरण, स्वर और तंत्र से असहमति और घोर विरोध है। वह स्त्री को संस्कारों में जकड़ी देखना नहीं चाहतीं। उस इतिहास को पलट देना चाहती हैं जो पुरुष रचित है। उसके द्वारा बनाई गई आचार संहिता का पुरजोर विरोध अपनी निर्भीक भाषा में करती हैं। वह पुरुष वर्चस्व से स्वतंत्रता पाने की आवाज उठाते हुए स्त्री को मानसिक यंत्रणा से मुक्ति दिलाना चाहती हैं।
अनेक क्षेत्रों की तरह राजनीति में स्त्री की स्थिति का आकलन हो या साहित्य में संवाद करने वाली रचनाकार का, परिवार में मां की हैसियत हो या स्त्री शिक्षा की जरूरत, सामाजिक अनुकूलन के विरुद्ध आवाज उठानी हो या महिलाओं के लिए महिला पुलिस व्यवस्था की समीक्षा, मैत्रेयीजी महाप्रश्न करती हैं कि स्त्री का समय कब बदलेगा? वह स्त्री को एक पूर्ण इकाई के रूप में परिभाषित करती हैं।
Additional information
| Authors | |
|---|---|
| Binding | Paperback |
| ISBN | |
| Language | Hindi |
| Pages | |
| Publishing Year | 2019 |
| Pulisher |











Reviews
There are no reviews yet.