Andhkar Se Prakash Ki Aur

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Andhkar Se Prakash Ki Aur

Andhkar Se Prakash Ki Aur

80.00 79.00

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80.00 79.00

Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 5 in stock

Pages: 216

Year: 2018

Binding: Paperback

ISBN: 9788131013892

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

अंधकार से प्रकाश की ओर

कहते हैं कि किसी जंगल के निवासी एक राक्षस से बहुत परेशान थे। उसके कारण उन्हें प्रत्येक ऋतु में कष्ट उठाना पड़ता था। वह राक्षस गुफा में रहता था, जिसकी वजह से वे लोग उसमें रहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। उसे भगाने के लिए जिसने जो बताया, उन्होंने वही किया, लेकिन वह राक्षस गुफा छोड़कर कहीं नहीं गया। पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, झाड़-फूंक सभी उपाय बेकार सिद्ध हुए।

एक दिन कोई मस्त फकीर उस जंगल में पहुंचा। वनवासियों ने उसे अपनी सारी व्यथा-कथा सुनाई। वह फकीर उस गुफा में गया और सही सलामत वापस आ गया। वनवासियों ने हैरान होकर जब उससे पूछा, तो उसने बताया, ’’मैंने राक्षस को तुम लोगों की तकलीफ सुनाई और वह गुफा छोड़ने को तैयार हो गया। अब वह गुफा छोड़कर चला भी गया है।’’

वनवासी पहले तो फकीर की बात मानने को तैयार न हुए। लेकिन जब उसने उन्हें अपने साथ चलने को कहा, तो उनका मुखिया और कुछ अन्य योद्धा अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर गुफा में चलने के लिए तैयार हो गए। फकीर के हाथ में उस समय जलती हुई मशाल थी। प्रकाश में सब साफ-साफ दिखाई दे रहा था। पूरी गुफा में घूमने के बाद वनवासियों के साथ फकीर जब बाहर आया तो एक वृद्ध ने उससे पूछा, ’’आपके कहने पर वह राक्षस गुफा छोड़ने को कैसे तैयार हो गया, जिसे बरसों से हमारे पुरखे तरह-तरह के उपाय करने के बाद भी भगा नहीं पाए थे ?’’ वृद्ध के प्रश्न को सुनकर वह फकीर हंसा और बोला, ’’मैंने किसी को नहीं भगाया। वहां, गुफा में जब कोई राक्षस था ही नहीं, तो भगाने का सवाल ही नहीं उठता था।’’ फकीर ने समझाया, ’’अंधेरे को ही तुम्हारे पुरखों और तुमने राक्षस समझा हुआ था। उसे भगाने का एक ही साधन है प्रकाश। प्रकाश के सामने तुम्हारा राक्षस भाग गया। अब तुम निश्चिंत होकर इसमें रहो।’’

ऐसा कहकर वह फकीर बस्ती से बाहर चला गया। वनवासी गुफा में रहने लगे। अब वह सर्दी, गर्मी और बरसात की मार से हैरान-परेशान नहीं होते थे, बल्कि इन ऋतुओं का आनंद लेते थे।

इस कथा का संकेत आप समझ गए होंगे। प्रकाश से जिस तरह अंधकार छंट जाता है और आप ठोकरें खाने से बच जाते हैं-क्योंकि तब सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है, उसी तरह ज्ञान के प्रकाश से जीवन सुव्यवस्थित हो जाता है-भटकने या गिरकर चोट लगने की कतई संभावना नहीं रहती।

’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के रूप में ऋषियों ने जो प्रार्थना की है, उसमें सत्य और अमरत्व दोनों समाहित हैं। असत्य से सत्य की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर तथा अंधकार से प्रकाश की ओर मानो एक ही प्रार्थना की अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्तियां हैं।

पूज्य स्वामी अवधेशानंद जी महाराज के प्रवचनों में परोक्ष-अपरोक्ष रूप से उपनिषद् प्रतिपादित तत्व-ज्ञान की ही विवेचना और व्याख्या की गई है। वहीं से इन सूत्रों को चुनकर यहां आपके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।

इन्हें पढ़कर आपको ऐसा लग सकता है कि इनमें कुछ नया नहीं है। याद कीजिए श्रीकृष्ण के इन शब्दों को, जिनमें वे कहते हैं-नासतो विद्यते भावो-नाभावो विद्यते सत: अर्थात असत् कभी सत् नहीं हो सकता और सत् का कभी अभाव नहीं होता।

वेदांत की इस संदर्भ में स्पष्ट धारणा है कि जीवन में कुछ प्राप्त नहीं करना है-जानना है बस। हैंड पंप जब सूख जाता है, तो वह पानी नहीं देता। तब पानी बाहर से डालना पड़ता है। बाहर से डाला गया जल भीतर के जल को बाहर ले आता है। यही भूमिका साधक के जीवन में शास्त्रीय याकि शब्दज्ञान की है। शब्दों की उपयोगिता को नकारना या कि नएपन की खोज नासमझी है।

हमेशा ध्यान रखिएगा, दीपक के साथ जब दूसरा दीपक जुड़ता है, तो वह प्रकाशवान् हो जाता है, यही आत्मज्ञानी के संग का लाभ है। एक बात और कि दूसरा दीपक पहले दीपक की ऊष्मा और प्रकाश को आत्मसात् करने के लिए पूरी तरह से तैयार होना चाहिए।

आपका जीवन भी ज्ञान की परम आभा से प्रकाशित हो-यही प्रार्थना है प्रभु चरणों में।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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