Antarkathaon Ke Aaine Mein Upanyas

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Antarkathaon Ke Aaine Mein Upanyas

Antarkathaon Ke Aaine Mein Upanyas

250.00 225.00

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250.00 225.00

Author: Rahul Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 152

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 9788193655566

Language: Hindi

Publisher: Bhartiya Jnanpith

Description

अर्न्तकथाओं के आईने में उपन्यास

राहुल सिंह ने पिछले एक दशक में कथालोचना के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। हिन्दी उपन्यासों पर केन्द्रित उनकी यह आलोचनात्मक कृति 1936 ई. से लेकर 2014 ई. तक के अन्तराल से एक चयन प्रस्तुत करती है। इसमें एक ओर तो अकादमिक क्षेत्र में पढ़ाये जानेवाले ‘गोदान’, ‘तमस’ और ‘डूब’ जैसे उपन्यास हैं तो वहीं दूसरी ओर ‘मिशन झारखंड’, ‘समर शेष है’, ‘काटना शमी का वृक्ष’, ‘निर्वासन’, ‘कैसी आगि लगाई’, ‘बरखा रचाई’, ‘आदिग्राम उपाख्यान’, ‘काटना शमी का वृक्ष पद्म पंखुरी की धार से’, ‘निर्वासन’ और संजीव की ‘फाँस’ को छोडक़र उनके लगभग उपन्यासों को रेखांकित करता एक विशद आलेख शामिल है, जिसके केन्द्र में ‘रह गई दिशाएँ इसी पार’ है।

उपन्यासों में विन्यस्त कथात्मकता की परतों को खोलने के लिए उसकी अन्तर्कथाओं को उपन्यासकार द्वारा उपलब्ध कराये गये अन्तःसूत्रों की तरह वे अपनी आलोचना में बरतते हैं। इस कारण वे पाठ के भीतर से उपन्यास के लिए प्रतिमान ढूँढनेवाले एक श्रमसाध्य आलोचक की छवि प्रस्तुत करते हैं। हर लेख आलोचना की भाषा पर की गई उनकी मेहनत का पता देती है। कथात्मकता की कसौटी पर वे उपन्यासों से इतर एक आत्मकथा ‘मुर्दहिया’, एक डायरी ‘अग्निपर्व शान्तिनिकेतन’ और एक आलोचनात्मक कृति ‘उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता’ पर भी कुछ जरूरी बातें प्रस्तावित करते हैं। इस लिहाज से देखें तो अपनी समकालीन कथात्मकता की पड़ताल करती एक जरूरी किताब है, जिसे जरूर देखा जाना चाहिए।

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Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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