Asambhav Ke Viruddh : Kathakar Swayam Prakash

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Asambhav Ke Viruddh : Kathakar Swayam Prakash

Asambhav Ke Viruddh : Kathakar Swayam Prakash

875.00 870.00

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Author: Kanak Jain

Availability: 4 in stock

Pages: 424

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 9789386604576

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

असम्भव के विरुद्ध : कथाकार स्वयं प्रकाश

हिन्दी में शुरु से माहौल कुछ ऐसा बना कि लोकप्रिय और साहित्यिक में छत्तीस का आंकड़ा हो गया। साहित्यिक की जो कसौटी हिन्दी में बनी, उसमें लोकप्रियता को बाहर रखा गया धीरे- धीरे यह हुआ कि लोकप्रियता हिन्दी में अपराध समझी जाने लगी। उन लेखकों की साहित्यिकता हिन्दी में संदिग्ध हो गई जो साहित्यिक के साथ लोकप्रिय भी थे। घर्मवीर भारती का उपन्यास गुनाहों का देवता खूब पढ़ा गया, लेकिन विडंबना यह है कि आज भी हिन्दी के श्रेष्ठ उपन्यासों में उसकी गणना कभी-कभार ही होती है। स्वयं प्रकाश प्रतिबद्ध कोटि के गंभीर कथाकार हैं, उनकी अधिकांश रचनाएं सोद्देश्य हैं, लेकिन एक साहित्यिक मूल्य के रुप में उनके यहां लोकप्रियता से परहेज नहीं है। उनकी कहानियों में लोकप्रियता के लिए जरूरी चीजों की वापसी और सार-संभाल की सजगता मिलती है। अपनी कहानियों के आरंभ के मामले जैसी सजगता स्वयं प्रकाश के यहां है, वैसी हिन्दी के कम कहानीकारों में मिलती है। बात बहुत छोटी और कुछ लोगों के लिए नग्ण्य जैसी है, लेकिन कहानी के साथ पाठक का संबंध यहीं बनना शुरू होता है इसलिए इसका बहुत महत्त्व है।

स्वयं प्रकाश की कहानियां पढ़ते हुए बराबर यह लगता है कि वे कहानी लिखते नहीं, कहते हैं। एक आदमी होता है बातपोश। वह घुमाफिरा कर, जोड़तोड़ कर, यहां-वहां की लगाकर बात इस तरह करता है कि यह सामनेवाले को जम जाती है। स्वयं प्रकाश भी बातपोश कहानीकार हैं।

वे इस तरह कहते हैं कि सामने वाला लंबे समय तक उनके साथ, उनके असर में रहता है। स्वयं प्रकाश की कहानियों की असल ताकत उनका गद्य है। हिन्दी में ऐसा गद्य अन्यत्र दुर्लभ है। हिन्दी के कथा गद्य की सही मायने में अभी पहचान और पड़ताल वहीं हुई, अन्यथा स्वयं प्रकाश का नाम भी उन कुछ कहानीकारों में शुमार किया जाता, जिन्होंने हिन्दी की जातीय प्रकृति के अनुकूल गद्य लिखा। हिन्दी का स्वभाव और संस्कार कुछ ऐसा है कि उसमें पेचदार और जलेबी जैसा गद्य जमता नहीं है। अंग्रेजी के अभ्यास और संस्कार वाले लोगों ने हिन्दी गद्य को अंग्रेजी जैसा बनाने की कवायद की और इस जद्दोजहद में गद्य का कबाड़ा हो गया। कुछ लोगों ने तो ऐसा फिरकीदार गद्य लिखा कि यह कर्ड बार उलटबांसी जैसा हो गया। ऐसे लोगों के कारण ही लिखने और बोलने की हिन्दी अलग-अलग हो गई स्वयं प्रकाश के गद्य में यह फांक नहीं है। उठका कथा और कथेतर, दोनों प्रकार का गद्य दैनंदिन जीवन से लिया गया, छोटे-छोटे वाक्यों वाला मुहावरेदार गद्य है।

कहानियां ही नहीं उनके उपन्यास, नाटक और कथेतर लेखन उनके प्रभावशाली गद्यकार और भाषा के सावधान प्रयोक्ता के रूप में हमारे समक्ष हैं। यह पुस्तक स्वयं प्रकाश के समग्र लेखन का विहंगावलोकन है जिसमें लगभग तीन पीढ़ियों के लोगों ने हिंदी के इस अनूठे लेखक के महत्त्व और प्रदाय का मूल्यांकन किया है।

– माधव हाड़ा

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Hardbound

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Language

Hindi

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2018

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