Asmita Vimarsh

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Asmita Vimarsh

Asmita Vimarsh

950.00 750.00

In stock

950.00 750.00

Author: Kaushalya Vardhrajan, Sanjay L. Madar

Availability: 5 in stock

Pages: 384

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9788179653166

Language: Hindi

Publisher: Taxshila Prakashan

Description

अस्मिता विमर्श

‘एक लेखक और आलोचक की विचारधारा मानव चेतना और परिवेश को भलीभाँति परखने वाली होती है। यह बात हमें साहित्य के कथ्य में मिल जाना स्वाभाविक है। क्योंकि मनुष्य के पास जितने भी अभिव्यक्ति के साधन हैं उनमें सबसे अधिक समर्थ, नमनीय एवं रमणीय साधन साहित्य ही है। ‘आलोचना साहित्य की सर्जना में सेतु का कार्य करती है’। ‘अस्मिता विमर्श’ इस शीर्षक से संपादित इस आलोचनात्मक ग्रंथ में हिंदी साहित्य के विविध विधा पर लिखित विमर्श के विभिन्‍न पक्षों को प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रंथ में लगभग छप्पन शोधपरक आलेख हैं जो रचनाकार की मूल मनोभूमि का विवेचन विश्लेषण, रचना का सम्यक निरीक्षण- परीक्षण, गुण दोष का परीक्षण, सामाजिक परिवेश अंकन, शाश्वत मानवमूल्यों की स्थापना एवं औचित्य प्रतिस्थापन के परिप्रेक्ष्य में विवेचित हैं। आलोचकों ने हिन्दी साहित्य में संस्कृति, भाषा, सामाजिक, राजनीति, स्त्री, दलित, आदिवासी, मीडिया से जुड़े विभिन्न प्रश्नों को लेकर विचारों का मंथन करने का प्रयास किया है। जहाँ तक मैं समझता है, प्रस्तुत संपादित पुस्तक में जितने भी शोधालेख सम्मिलित हुए हैं वह देखा भोगा तथा अपने समय और समाज से अनुभव प्राप्त किया हुआ लेखक का मानस ही आलोचना का आभार बना हुआ दिखाई देता है। प्रस्तुत संपादित ग्रंथ ‘अस्मिता विमर्श’ का प्रधान प्रयोजन हिंदी भाषा और साहित्य का विमर्शमूलक वैचारिक पक्ष खोजना रहा है।

हिंदी साहित्य में भी ‘में हूँ’ के भावबोध को विभिन्‍न विधाओं में अभिव्यक्ति मिली है। आधुनिक काल में यह चेतना अधिक मुखर होकर, विभिन्‍न विधाओं में विमर्श के रूप में अवतरित हुई है। यद्यपि अस्मिता की सब ‘सम्मत परिभाषा नहीं है परंतु इस अवधारणा का सटीक प्रयोग हिंदी कथा-साहित्य, कविता और नाटकों में हुआ है। आज हिंदी साहित्य में स्त्री, दलित, आदिवासी, ट्रांसजेंडरों आदि की अस्मिता पर न केवल लिखा जा रहा परंतु इसे एक ‘मूवमेंट’ का रूप भी दिया जा रहा है। आज समाज के ये तबके सिर्फ अपनी ‘पहचान’ पाने के लिए संघर्षरत नहीं है परंतु वे अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हैं। अस्मिता विमर्श शीर्षक से संपादित इस आलोचनात्मक ग्रंथ में हिंदी साहित्य में अस्मिता विमर्श के विभिन्‍न पक्षों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इस ग्रंथ में लगभग पचास शोधपरक आलेख हैं। इस ग्रंथ के दो खंड हैं। पद्य खंड में हिंदी कविताओं में अस्मिता विमर्श पर विभिन्‍न विद्वानों ने अपना मत स्पष्ट किया है। गद्य खंड के अंतर्गत हिंदी कथा-साहित्य, नाटक तथा आत्म-कथा में अस्मिता विमर्श के विविध आयामों पर प्रकाश डाला गया है, तथापि स्त्री अस्मिता केंद्र में रही है। इस ग्रंथ का प्रधान प्रयोजन हिंदी साहित्य की प्रमुख विधाओं जैसे कविता, कथा-साहित्य, नाटक तथा आत्म-कथा आदि का विमर्श मूलक आलोचना कर उसके वैचारिक पक्ष को समझना है क्योंकि साहित्य तत्कालीन युगबोध का परिचायक होता है और अस्मिता एक सार्वभौम और गतिशील चिंतन। वह जड़ और अंतिम नहीं वरन गतिमान और अनंत है।

Additional information

Authors

,

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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