Bharitya Samaj Mein Pratirodh Ki Parampara
₹595.00 ₹455.00
- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
भारतीय समाज में प्रतिरोध की परम्परा
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय समाज और संस्कृति के अतीत तथा वर्तमान में मौजूद प्रतिरोध की प्रवृत्तियों और प्रक्रियाओं की खोज, पहचान और व्याख्या की कोशिश है। पुस्तक के आरम्भ में संस्कृति के समाजशास्त्र के स्वरूप का विवेचन है और बाद में भारतीय संस्कृति के अतीत और वर्तमान में मौजूद द्वन्द्वों की पहचान है। इन द्वन्द्वों के बीच से ही उभरती है प्रतिरोध की प्रक्रिया। आधुनिक भारत में सभ्यताओं के बीच संघर्ष का जो महाभारत विगत दो सदियों से साम्प्रदायिकता के रूप में चल रहा है उसका कुरुक्षेत्र भारतीय इतिहास का मध्यकाल है। उस मध्यकाल में दो सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों का टकराव था तो दोनों के मेल से एक प्रकार का सांस्कृतिक संगम भी निर्मित हो रहा था, जिसकी अभिव्यक्ति कविता, संगीत, चित्रकला और स्थापत्य में हो रही थी। उसी सांस्कृतिक संगम की खोज पुस्तक के दूसरे निबन्ध में है।
भारतीय समाज में स्त्री की पराधीनता जितनी पुरानी और सर्वग्रासी है उतनी ही पुरानी है उसके विरुद्ध विद्रोह और प्रतिरोध की परम्परा। इस परम्परा का एक उज्ज्वल नक्षत्र है महादेवी वर्मा की पुस्तक ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, जिसके महत्त्व का मूल्यांकन इस पुस्तक में किया गया है।
पुस्तक में दो निबन्ध भूमण्डलीकृत भारत में किसानों की तबाही और बर्बादी से सम्बन्धित हैं। बाद के चार निबन्धों में महात्मा गाँधी के चिन्तन और लेखन का मूल्यांकन है और साथ में स्वराज्य तथा लोकतन्त्र सम्बन्धी उनके विचारों का विवेचन भी। पुस्तक के अन्तिम निबन्ध ‘आज का समय और मार्क्सवाद’ में मार्क्सवाद से जुड़े संकटों और सवालों पर भी लेखक द्वारा विचार किया गया है। आशा है कि पाठकों को भारतीय समाज और संस्कृति में मौजूद प्रतिरोध की परम्परा की चेतना और प्रेरणा इस पुस्तक से मिलेगी।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.