Bhartiya Samaj

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100.00 90.00

In stock

100.00 90.00

Author: Shyama Charan Dubey

Availability: 5 in stock

Pages: 132

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788123735160

Language: Hindi

Publisher: National Book Trust

Description

भारतीय समाज

मुख्य रूप से युवा पाठकों को संबोधित इस पुस्तक में विभिन्न स्रत्रों द्वारा भारतीय समाज के भूत और वर्तमान को निकट से देखने का प्रयास किया गया है। भारतीय विविधता और एकता के विकास को इसके जटिल इतिहास के माध्यम से खोजा गया है। सदियों से वर्ण, जाति, परिवार और नातेदारी की क्रियाशीलता का नगरीकरण एवं ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया गया है। आज के भारत का लेखा-जोखा देने के साथ ही पुस्तक में वर्तमान में हो रहे और भविष्य में होने वाले संभावित परिवर्तन की भी समीक्षा प्रस्तुत की गयी है। संक्षेप में, यह पुस्तक भारतीय समाज का एक प्रामाणिक दस्तावेज है।

प्राक्कथन

यह पुस्तक उन युवा पाठकों को संबोधित है जो भारतीय समाज ऐतिहासिक जड़ों इसके विचारधारात्मक आधारों तथा सामाजिक संगठन के विषय में कुछ जानना चाहते हैं। अंतिम अध्याय में परिवर्तन की प्रमुख प्रवृत्तियों पर भी चर्चा की गयी है। आंकड़ों और व्याख्याओं के लिए इतिहास, भारतविद्या, मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र जैसे विविध स्त्रोतों का सहारा लिया गया है। इन विषयों से प्राप्त अंतर्दृष्टियां, मेरे विचार से, भारत के सामाजिक यथार्थ पर प्रकाश डालने के लिए आवश्यक हैं।

भारत का एक सुदीर्घ इतिहास है और उसकी सामाजिक संरचना बहुत जटिल है। इसके बहुरंगी संरूपों का संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत करना आसान नहीं। इतनी छोटी पुस्तक में स्थानीय तथा क्षेत्रीय रीति-रिवाजों तथा सामाजिक रूपों के सूक्ष्म विवरणों पर चर्चा कर पाना तो स्पष्टतः असंभव है। फिर भी इसके कुछ उन विविधताओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है जो भारतीय समाज की विशेषताएं हैं। एकीकरण के पक्षों की भी पड़ताल की गयी है। आशा है कि पुस्तक अपने पाठकों को न भ्रमित करेगी और न उन्हें चकरायेगी।

दो शब्द भाषा के विषय में। दशकों के दौरान समाजशास्त्र ने एक ऐसी दुहरू शब्दावली विकसित की है जो विषय का विशेष ज्ञान न रखने वाले मेधावी पाठकों को भी परेशान करती है। इस पुस्तक में एक सरल-शब्दों का प्रयोग करना पड़ा है किंतु ऐसे शब्दों को, जहाँ वे पहली बार आये हैं, वहां अथवा शब्दावली में स्पष्ट कर दिया गया है।

कुछ हद तक सभी इतिहास तथा समाजशास्त्र पुनर्रचनाएं ही हैं और इनमें सर्वाधिक वस्तुनिष्ठ लेखकों के भी विचारधारात्मक आग्रह प्रतिबिंबित होते हैं। संभव है इस पुस्तक में भी आत्मनिष्ठ झुकाव आ गये हो किंतु किसी विचारधारा विशेष के पक्षों में मैंने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा नहीं है। अंत में एक संक्षिप्त पुस्तक सूची दी गयी है ताकि पाठक ऐसे दृष्टिकोणों से भी परिचित हो सकें जो संभवतः मेरे दृष्टिकोण से भिन्न हों।

ज्ञान के प्रमुख प्रकार्यों में से एक है मानसिक क्षितिज का विस्तार करना और यह पुस्तक इसी उद्देश्य से लिखी गयी है। आशा है कि इससे भारत के सामाजिक व्यक्तित्व के विषय में कुछ आलोचनात्मक जागरुकता उत्पन्न होगी तथा हमारे देश के अतीत और वर्तमान के बारे में चिंतन की प्रेरणा मिलेगी। इतिहास तथा परंपराओं को कभी-कभी बेहतर ढंग से समझा जाता है जब उन पर से रहस्य का आवरण हटा दिया जाता है।

इस पुस्तक पर सावधानीपूर्ण तथा रचनात्मक संपादकीय परामर्श के लिए मैं श्री रवि दलाल के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ।

 

अनुक्रम

★       भारतीय समाज का निर्माण

★       विविधता और एकता

★       वर्ण और जाति

★       परिवार तथा नातेदारी व्यवस्था

★       परिवार तथा नगरीय संदर्भ

★       नगरीकरण के संरूप

★       स्त्री-पुरुष संबंध

★       परिवर्तन की प्रवृत्तियाँ

★       सहायक पुस्तकें

★       शब्दावली

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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