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Description
देवदास
वैशाख मास की दोपहरी की भीषण गरमी में पाठशाला के एक कमरे में फटी चटाई पर बैठकर ऊंघते और जम्हाई लेते देवदास ने कमरे में घुटते रहने की अपेक्षा खुले आसमान में पतंग उड़ाने का मज़ा लेने का निश्चय किया और फिर स्कूल से छुट्टी पाने का बहाना भी गढ़ लिया।
इस समय पाठशाला में अर्धावकाश हुआ था। कुछ बच्चे अपनी-अपनी मण्डली बनाकर उछल-कूद और कोलाहल कर रहे थे, तो कुछ वृक्ष के नीचे गुल्ली डण्डा खेल रहे थे। देवदास को जलपान के लिए बाहर जाने की अनुमति देना बन्द कर दिया गया था; क्योंकि एक बाहर गया यह छोकरा वापस पाठशाला की ओर मुंह नहीं करता था। इसे गोविन्द पण्डित बहुत बार देख-परख चुके थे। देवदास के पिता ने भी अर्धावकाश में लड़के को बाहर न जाने के लिए अपनी सहमति दे रखी थी। इस अवधि में देवदास को अपनी कक्षा के मॉनीटर भोला की देख-रेख में रहना पड़ता था।
हाथ में स्लेट लेकर उठ खड़े हुए देवदास ने देखा कि उस कमरे में उसके अध्यापक महोदय ऊंघ रहे हैं और मॉनीटर भोला दूर किसी टूटी-फूटी बैंच पर अन्य अध्यापक की भूमिका निभा रहा है। वह कभी अनमने भाव से बाहर खेलते लड़कों को देखता और कभी अपनी उड़ती निगाह देवदास और पार्वती पर डालता था। पार्वती एक महीना पहले ही पण्डितजी के आश्रय में रहने और शिक्षा ग्रहण करने आयी है। पण्डितजी से प्रभावित होने के कारण ही वह इस समय ‘बोधोदय’ पाठ्यपुस्तक के अन्तिम ख़ाली पृष्ठ पर स्याही से, मज़े से सो रहे पण्डितजी का चित्र बना रही थी और एक कुशल चित्रकार की भाँति रह-रहकर इस तथ्य की जांच कर रही थी कि वह अपने प्रयास में कितनी सफल रही है। यद्यपि वह अपने मनमाफिक चित्र नहीं बना पायी थी, तथापि जैसा बन पड़ा था, उसे ही देख-देखकर वह काफी प्रसन्न हो रही थी।
इसी समय स्लेट हाथ में लेकर खड़े देवदास ने भोला को ज़ोर से पुकारते हुए हिसाब न हो पाने की शिकायत की, तो भोला ने गम्भीर होकर पूछा, ‘‘कौन-सा हिसाब नहीं हो रहा है ?’’
‘‘मन, सेर, छटांक का।’’
‘‘लाओ, अपनी स्लेट मुझे दिखाओ।’’
देवदास ने अपनी स्लेट उसे थमा दी और भोला हिसाब लगाने में जुट गया। ठीक इसी समय देवदास ने तीन बरसों से निरन्तर टूटी बैंच पर बैठते आ रहे भोला को धक्का दे दिया। बैंच के नीचे पण्डितजी कभी सुविधा होने पर अपने मकान बनाने के लिए सस्ते दाम पर मिल रहा चूना खरीदकर लिया था, जिसकी रखवाली उस पर पड़ी बैंच पर बैठा भोला पूरी सावधानी से करता आ रहा था। हिसाब करने में खोया भोला देवदास के धक्के से संभल न सका और चूने के उसी ढेर में जा धंसा। बस, फिर क्या था, इस दृश्य का आनन्द लेती हुई पार्वती ताली बजाकर हंसने और उछलने-कूदने लगी। पेड़ के नीचे खड़े लड़के भी खूब ज़ोर से हंसने लगे। पण्डितजी की नींद खुल गयी और वह क्रुद्ध दृष्टि से चारों ओर देखने लगे। उन्होंने टूटी बैंच के नीचे चूने में धंसे और बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर पटकते किसी को देखा, तो वह चिल्लाकर पूछने लगा, ‘‘यह काहे का शोर मचाया जा रहा है ?’’
पण्डितजी के प्रश्न का उत्तर भला कौन देता ? वहां कमरे में केवल पार्वती उपस्थित थी, जो अपनी मस्ती में तालियाँ बजाते हुए धरती पर लोट रही थी। उत्तर न पाकर क्रुद्ध हुए वह पुनः चिल्लाये, ‘‘अरे ! हुआ क्या है ?’’
इसी बीच अपने ऊपर से चूना हटाने में सफल हुआ भोलानाथ बैंच से बाहर निकला, तो उसे देखकर पण्डितजी फिर चिल्लाकर बोले, ‘‘बदमाश कहीं का ! तू चूने में कैसे धंस गया था ?’’
भोला पीड़ा से चिल्लाने लगा, तो पण्डितजी ने और अधिक क्रुद्ध स्वर
में डांटते हुए पूछा, ‘‘बदमाश ! कुछ बोलता और बताता क्यों नहीं ?’’
‘‘मैं देवदास का सवाल हल कर रहा था कि उस साले ने मुझे धक्का देकर नीचे गिरा दिया।’’
‘‘उस बदमाश ने फिर शैतानी की ?’’
सारी बात को समझकर पण्डितजी भोला के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए बोले, ‘‘अच्छा, वह गधा तुझे धकेलकर बाहर भाग गया है।’’
भोला ज़ोर से रोने-बिलखने लगा।
भोला ने उठकर अपने शरीर को झाड़-पोंछकर भली प्रकार साफ़ करने की पूरी चेष्टा की, किंतु रंग और चूने के कुछ निशानों के लगे रहने के कारण वह भूत-जैसा दिखाई देने लगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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