Hanumanjee Sarvadhik Lokpriya Devta Kyon

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Hanumanjee Sarvadhik Lokpriya Devta Kyon

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150.00 149.00

In stock

150.00 149.00

Author: Sunil Gombar

Availability: 5 in stock

Pages: 168

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788190304382

Language: Hindi

Publisher: J. B. CHARITABLE TRUST

Description

हनुमानजी सर्वाधिक लोकप्रिय देवता क्यों ?

आमुख

जयति मंगलागार-संसार भारापहर-

श्री हनुमान जी सेवा-शक्ति-सामर्थ्य तथा सत्कर्म, पराक्रम की त्रयी भूमिका में प्रत्येक पौराणिक आख्यानों में, प्रत्येक काल में वर्णित महानतम दैव शक्ति के रूप में दर्शाये गये हैं। अजर-अमर और चिरंजीवी यह भक्ति शक्ति स्तोत्र भक्तों को सबल सहायक के रूप में अत्यंत भाता आ रहा है। उस पर भी भय नहीं एक आत्मिक स्नेह की अनुभूति उनके प्रत्येक सेवी को होती आयी है। प्रश्न एक जिज्ञासा रूप में अवश्य ही उठता है कि ‘मानस’ में श्री राम लक्ष्मण के समक्ष करबद्ध विनती करती, उनसे आगमन का प्रश्न करती- “को तुम स्यामल गौर सरीरा”—- यह विनम्र मूर्ति यह महाशक्ति क्या मात्र सुग्रीव सचिव वानर हनुमान जी की ही है ? – वरना हनुमान जी के महाम्त्य का कोई ओर-छोर तो दिखता ही नहीं-। पूरा हनुमत्‌ चरित जो अब तक प्रकाश में आया है, उससे तो सुग्रीव सचिव मात्र होने की अवधारणा को विस्तार ही मिलता दिखता है, पौराणिक अवधारणायें तो आपको इससे कहीं अधिक कुछ और ही निरूपित करती दिखती हैं, आपके कार्य अलौकिक रहे हैं।

नारद पुराण में तो आपकी प्रार्थना आदि सत्ता के रूप में प्राप्त होती है –

“ससर्वरूपः सर्वज्ञ सृष्टि स्थिति करोवतु

स्वयं ब्रह्म स्वयं विष्णुः साक्षाद्‌ देवों महेश्वरः।।”

(नारद पुराण 78/24)

श्री हनुमान जी कलिकाल के एकमात्र संकट सहाय-रक्षक देवता के रूप में लोकप्रियता के चरम पर हैं।

प्रत्यक्ष और जाग्रत शक्ति पुंज श्री हनुमान जी महाराज प्रत्येक कामना की पूर्ति करने वाले सर्वशक्तिमान सक्षम देवता के सर्वोच्च आसन पर विराजमान हैं। आप इस पृथ्वी लोक पर अपने प्रभु श्री राम की आज्ञा पालन हेतु सर्वदा के लिये अवतरित शरण दाता हैं।

कल्पपर्यन्त तक विराजमान रहने वाली हनुमत्‌ शक्ति प्रत्येक सद्गुण के सर्वोच्च सोपानों पर ही रहने से भक्तगण उनके रूपों के दर्शन, विग्रहों की पूजा तथा नित्य स्मरण से निरंतर निश्चित तथा प्रसन्‍न रहते हैं।

देश-विदेश तक हनुमत्‌ कीर्ति प्रामाणिक रूप से लोकप्रियता के ही शिखर पर है। भारत भूमि पर तो आप सर्वाधिक लोकप्रिय प्रत्यक्ष देवता के रूप में ही भक्तों के हृदय में बसे हुए हैं।

जन्म से ही पवन देव-शिव जी के अंशों आदि से आविर्भूत यह परमसत्ता सर्वाधिक रहस्यमयी किंतु उतनी ही पूजित भी रहती आ रही है। विषय में प्रत्येक तत्व सर्वोच्चता की ही पराकाष्ठा बन चुका है। सेवा, कर्म, ऊर्जा, ओज, तेज, बल-बुद्धि, ज्ञान-विवेक, विनम्रता, पराक्रम, संहार, शुभ शकुन, संदेश प्रदाता, दौत्य कार्य, संकटसहायक समर्पण, सभी रूपों में हनुमान जी की समता कर सके, अन्यत्र कोई है ही नहीं। और इस भी यह मूल तत्व कि इनमें से किसी भी प्रताप प्रभाव के प्रति आप में लेशमात्र भी अहं नहीं। यह निरभिमानिता आपके प्रति भक्तों को पूर्ण विश्वस्त या आश्वस्‍त ही नहीं करती वरन्‌ भक्त आप पर पूर्णतया समर्पित ही होते जाते हैं। “नाथ ! ना कछू मोरि प्रभुताई-सो सब तब प्रताप रघुराई—-” की हनुमत्‌ विनम्रता भक्तों को तो भाती ही है – स्वयं तुलसी जी की यह प्रामाणिकता, “महावीर विनवऊँ हनुमान। राम जासु जस आप बखाना।।” इस स्पष्ट संकेत देती है कि हनुमान जी की विरुदावली स्वयं उनके प्रभु भी गान कर उठते हैं। वह “राम” जो हनुमान जी के प्राणाधार हैं, वही “राम” अपने पूरे अवतरण काल में हनुमान जी पर इतना विश्वास करते हैं कि कंठ हो स्वयं को हनुमान जी का ऋणी तक कह जाते हैं- “सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं—-”। अतः लीला अवतरण के संवरण के पूर्व इस हेतु श्री राम आपको पृथ्वीलोक की संरक्षक अर्थात्‌ प्रत्यक्ष दैव शक्ति बताते यहीं प्रलय काल तक उपस्थित रहने को कह गये हैं। जिससे भक्त अपनी पीड़ा प्रार्थना उनसे साक्षात्‌ निवेदन कर समाधान पाते रहें।

यह तथ्य मात्र तथा हनुमत्‌ चरित का विराट स्वरूप भक्तों को ऐसा भाता आ रहा है कि ग्राम-ग्राम से लेकर देश-विदेश तक हनुमान जी के असंख्य पूजा स्थलों से आपकी लोकप्रियता प्रत्यक्ष और सर्वाधिक दिखती है।

हनुमान जी में अपने पूज्य पिता पवनदेव के उनचास स्वरूपों की, त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की, आद्यशक्तियों, महाशक्तियों, मूल प्रकृति, पंचमहाभूतों की शक्ति पूर्णतया समाहित है। तो साथ ही ग्रहों, नक्षत्रों, देवी-देवताओं, गंधर्व, यक्ष, किन्नरों, दैत्य, दानवों, नागों-ऋषि-मुनियों, देवर्षि और महर्षियों की शक्तियों के पूँजीभूत स्वरूप हैं हनुमान जी महाराज ! निष्काम कर्म-सेवा और भक्ति की एकमात्र दैव मूर्ति ही संकट सहायक तथा कामनापूर्ति में सक्षम होती है। दया, कृपा, करुणा के गुणों के साथ-साथ बल पराक्रम से आप दुष्टों का संहार भी करते हैं। अतः कर्म बंधन प्रधान कलियुग की बाधाओं से मुक्त करने को हनुमत्‌ पूजा उपासना का प्रचार प्रसार आज सर्वाधिक लोकप्रिय दिखता है-। कारणों की विवेचना तथा सीमित मीमांसा से प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से हमने पाठकों की सेवा हेतु हनुमान जी की लोकप्रियता को जानने का प्रयास मात्र किया है।

अपने आराध्य श्री हनुमान जी महाराज के श्री चरणों में नमन्‌ करते हम उनके आशीर्वाद और प्रेरणा के सदैव आकांक्षी रहें– उनका वरदहस्त प्रत्येक भक्त पर बना रहे—। इसी कामना के साथ-

 

अनुक्रम

आमुख

सुमिरों पवन कुमार

  • संपूर्ण समर्पण
  • श्री राम पर ही अखण्ड विश्वास
  • निराले “भक्त” और “अनन्य सेवक’’
  • अहंकार शून्य
  • काम बिना विश्वाम नहीं
  • श्रेष्ठतम दूत और विश्वसनीय संवाद कौशल
  • प्रभु आज्ञा को समर्पित
  • प्रभु कार्यों का निष्पादन (राम काज)
  • अवर्णनीय महिमा
  • संकटमोचक
  • सर्वश्रेष्ठ कर्मयोगी
  • राम जी के ही संदेशवाहक
  • अपूर्व शक्तिसंपन्‍न-बली-पराक्रमी
  • धैर्य तथा आत्मसंयम
  • सहजता भरा भोलापन
  • मनोकामनापूर्ण करने का दायित्व
  • प्रलय काल तक हनुमान जी ही हैं संकटमोचक
  • पाराशर संहिता का अकाट्य प्रमाण
  • अनन्त महिमा
  • सर्वदेवस्वरूप-सर्वफलप्रदाता

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Binding

Paperback

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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