Jatakaparijata Dviteya Bhag

-13%

Jatakaparijata Dviteya Bhag

Jatakaparijata Dviteya Bhag

400.00 350.00

In stock

400.00 350.00

Author: Gopesh Kumar Ojha

Availability: 5 in stock

Pages: 624

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9788120822641

Language: Sanskrit & Hindi

Publisher: Motilal Banarasidass

Description

जातकपारिजातः प्रथम भाग

ज्योतिष के संहिता, होरा और सिद्धान्त-इन तीन विषयों में प्रस्तुत कृति का स्थान होरा के अन्तर्गत है।

इसका निर्माण सर्वार्थचिन्तामणिकार वेंकटाद्रि के पुत्र श्री वैद्यनाथ ने विक्रम संवत्‌ 1482 में किया था। रचना मौलिक है किन्तु इसमें श्रीपतिपद्धति, तारावली, सर्वार्थचिन्तामणि, बृहज्जातक तथा अन्य पूर्ववर्ती ग्रन्थों का सार भी मिलता है।

अठारह अध्यायों के इस विशाल ग्रन्थ को दो भागों में बाँट दिया गया है। प्रस्तुत प्रथम भाग के 624 पृष्ठों में आठ अध्याय हैं :

  1. राशिशील-इसमें राशियों के स्वरूप, स्थान, संज्ञा आदि का विवेचन एवं उच्च-नीच दृष्टि से उनका वर्गीकरण किया गया है।
  2. ग्रहस्वरूप-इसमें ग्रहों, उपग्रहों के स्वरूप, गुण, काल आदि का ज्ञान-प्रकार वर्णित है।
  3. वियोनिजन्म-इसमें जातक के गर्भाधान से जन्म तक के संस्कारों का विवेचन किया गया है।
  4. अरिष्ट-इसमें ग्रहजनित अरिष्ट और अरिष्टभंग योगों का वर्णन है। अल्पायु, मध्यमायु और पूर्णायु योग विस्तार से दिये गये हैं।

5-6.     आयुर्दाय में आयु-सम्बन्धी शुभ योग और जातकभङ्ग में अशुभ योग हैं।

7-8.     राजयोग में लाभप्रद योग और द्वयादिग्रहयोग में ग्रहों के योगफल एवं द्वाद्वशभावफल कहे गए हैं।

विषय-विन्यास सरल एवं सुगम है। संस्कृत में मूल पद्य, हिन्दी में सौरभभाष्य और स्थान-स्थान पर चक्र, कोष्ठक, कुण्डलियाँ एवं तालिकाएँ भी दी गई हैं।

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Sanskrit & Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Jatakaparijata Dviteya Bhag”

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!