Kitne Pakistan

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Kitne Pakistan

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450.00 330.00

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450.00 330.00

Author: Kamleshwar

Availability: 5 in stock

Pages: 364

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788170284765

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

कितने पाकिस्तान

कमलेश्वर का यह उपन्यास मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय की एक दस्तक है…इस उम्मीद के साथ कि भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक के बाद दूसरे पाकिस्तान बनाने की लहू से लथपथ यह परम्परा अब खत्म हो….।

 

यह उपन्यास

LATEST नौकरियाँ करता और छोड़ता रहा। टी.वी. के लिए कश्मीर के आतंकवाद और अयोध्या की बाबरी मस्जिद विवाद पर दसियों फ़िल्में बनाता रहा। सामाजिक हालात ने कचोटा तो शालिनी अग्निकांड पर ‘जलता सवाल’ और कानपुर की बहनों के आत्महत्याकांड पर ‘बन्द फाइल’ जैसे कार्यक्रम बनाने में उलझा रहा। इस बीच एकाध फ़िल्में भी लिखीं। चंद्रक्रांता, युग, बेताल, विराट जैसे लम्बे धारावाहिकों के लेखन में लगा रहा।

इसी बीच भारतीय कृषि के इतिहास पर एक लम्बा श्रृंखलाबद्ध धारावाहिक लिखने का मौका मिला। कई सभ्यताओं के इतिहास और विकास की कथाओं को पढ़ते-पढ़ते चश्मे का नम्बर बदला। एक-एक घंटे की 27 कड़ियों को लिखते-लिखते बार-बार दिमाग आदिकाल और आर्यों के आगमन को लेकर सोचता रहा। बुद्धि और मन का सच मोहनजोदड़ो-हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बीच स्थापित किए गए ‘संघर्ष-सिद्धांत’ को स्वीकार करने से विद्रोह करता रहा। उस एपीसोड को मैंने कई बार लिखा। एक बार तो मैंने ऊब कर काम, निपटाने की नीयत से पश्चिमी विद्वानों के ‘आर्य-आक्रमण’ के सिद्धान्त को स्वीकार करके वह अंश लिख डाला। फिर लोकमान्य तिलक की इस थ्यौरी और उद्भावना से भी उलझता रहा कि आर्य भारत के मूल निवासी थे। मैंने इस उद्भावना को लेकर वह अंश फिर लिखा; लिखने के बाद भी मन निर्भ्रान्त नहीं हुआ। लगा यही कि यह बात भी रचना के सम्भावित सत्य तक नहीं पहुँचाती। सच को यदि पहले से सोचकर मान्य बना लिया जाए तो वह सत्याभास तो दे सकता है, पर आन्तरिक सहमति तक नहीं पहुँचाता। शायद, तब, रचना अपने सम्भावित सत्य को खुद तलाशती है। उसी तलाश ने मुझे यह बताया कि आर्यों के आक्रमण होने के कोई कारण नहीं थे। वे आक्रांता नहीं थे। वे आर्य आदिम कृषि से परिचित खानाबदोश कबीले थे, जो सहनशील प्रकृति और सृजनगर्भा धरती की तलाश में निकले थे। सिन्धु घाटी में सहनशीला प्रकृति तो थी ही, सृजनगर्भा धरती की भी कमी नहीं थी। इसलिए आक्रमण या युद्ध की ज़रूरत नहीं थी। आर्य आए और इधर-उधर बस गए होंगे।

वेदों में असुरों से युद्धों की जो अनुगूंज मिलती है, वह निश्चय ही सत्ता, समाज, वैभव और जीवन-पद्धति के स्थिरीकरण के बाद की उपरान्तिक गाथा है। दुनिया की सभ्यताओं के इतिहास में, किसी आक्रांता जाति समुदाय ने वेदों जैसे रचनात्मक ग्रन्थों के लिखे जाने का कोई प्रमाण नहीं दिया है। ऐसे ग्रंथ शांति, धीरज और आस्था के दौर में ही लिखे जा सकते हैं, युद्धों के दौर में नहीं। रचना के इस संभावित सत्य ने मुझे सांत्वना दी। तब ‘कृषि-कथा’ का लेखन हो सका।

इन और ऐसी तमाम रचनाओं, विचारों, इतिहास की सैकड़ों सृजनात्मक दस्तकों और व्यवधानों के बीच रुक-रुक कर ‘कितने पाकिस्तान’ का लिखा जाना चलता रहा। उन तमाम विधाओं की तकनीकी सृजनात्मकता का लाभ भी मुझे मिलता रहा। शब्द-स्फीति पर अंकुश लगा रहा।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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