Kiya Ankiya

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Kiya Ankiya

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750.00 550.00

In stock

750.00 550.00

Author: Purushottam Agrawal

Availability: 5 in stock

Pages: 340

Year: 2015

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126728664

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

किया अनकिया

पुरुषोत्तम अग्रवाल हमारे समय की एक महत्त्वपूर्ण बौद्धिक और सर्जनात्मक उपस्तिथि हैं। उनका लेखन रूप और अंतर्वस्तु की दृष्टि से विविध और विशाल है। उनकी कई स्वतंत्र छवियाँ हैं, लेकिन कोई एक छवि नहीं है। चिन्तक, आलोचक, कवि, कथाकार, विमर्शकार, कार्यकर्ता, पत्रकार, व्यंग्यकार, प्राध्यापक, फिल्म-विशेषज्ञ, धर्मशास्त्री से मिलकर उनकी छवि बनती है। उनकी समग्र चावी की परख और पहचान के लिए उनके सम्पूर्ण लेखन का परिचय प्राप्त करना जितना जरूरी है उतना ही कठिन भी। उनका समग्र पाठ श्रमसाध्य है, इसलिए उनकी रचनाओं का एक प्रतिनिधि चयन और प्रकाशन विलंबित माँग थी जिसे इस संचयन के प्रकाशन से पूरा करने के प्रयास किया गया है।

नवीन और प्राचीन वैश्विक वैचारिक निरूपणों और साहित्यिक सिद्धांतों की स्पष्ट समझदारी और उनसे संवाद की प्रवृति पुरुषोत्तम अग्रवाल की शक्ति है, जो उनके लेखन को निरंतर आकर्षक और विचारोत्तेजक बनाए रखती है। इसी से उनमे बौद्धिक साहस उत्पन्न होता है, इस साहस का एक प्रमाण है अस्तिमतावाद की शक्ति और सीमाओं का तटस्थ व् साहसपूर्ण मूल्यांकन। इसी साहस का एक और प्रमाण है-धर्म, अध्यात्म अरु साम्प्रदायिकता पर उनका रूख। वे धर्म को सत्ता-तंत्र मानते हैं लेकिन आध्यात्मिकता को सहज मानवीय प्रवृत्ति के रूप में देखते हैं।

कबीर, कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरु के धर्म और आध्यात्म सम्बन्धी विचारों के आधार पर अपनी अवधारणा को तैयार करते हैं। उनकी दृढ मान्यता है कि धर्म का, फलतः साम्प्रदायिकता का, उन्मूलन तभी संभव है जब आध्यामिकता को मानव सुलभ मानकर धर्म से उसे स्वायत किया जाए। पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेखन का एक बड़ा हिस्सा भक्तिकाल पर है। खास तौर पर कबीर पर। जाति, धर्म, औपनिवेशिक आधुनिकता, अस्मितावाद इत्यादि वैचारिक निरूपणों से आच्छादित कबीर के कवि रूप को सामने लाकर उन्होंने उनकी प्रासंगिकता को पुनः अनुभूत बनाया है।बौद्धिक बेचैनी, साहित्यिक अभिरूचि, सांस्कृतिक अंतदृष्टि और आलोचकीय विवेक के साथ समकालीन जीवन के विविध पक्षों और प्रश्नों पर विचार करनेवाले बुद्धिजीवी विरल हैं।

पुरुषोत्तम अग्रवाल की पत्रकारिता इस दृष्टि से आश्वस्तिदायक है। उनका कथा साहित्य विविध संकटों से आच्छन्न बौद्धिक-जीवन के संघर्ष और जिजीविषा को सामने लाता है। उनके साहित्य में फासीवाद के देशी संस्करण के दबाव में अभिव्यक्ति के संकट और कला-बुद्धि-विरोधी दमघोटू वातावरण की भयावहता का एहसास मुक्तिबोध की याद दिलाता है।

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Authors

Binding

Hardbound

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Publishing Year

2015

Pulisher

Language

Hindi

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