Layabrahm Ke Upaasakadvay

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Layabrahm Ke Upaasakadvay

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600.00 570.00

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Author: Dr. Vanmala Parvatkar

Availability: 5 in stock

Pages: 282

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9789381999233

Language: Hindi

Publisher: Sharda Sanskrit Sansthan

Description

लयब्रह्म के उपासकद्वय

प्रस्तुत कृति में भारतवर्ष के यशस्वी कलाकार गोवाग्रान्तवर्ति स्व. लक्ष्मणराव पर्वतकर ‘लयभास्कर’ एवं तत्तनुज स्व. रामकृष्णराव पर्वतकर ‘लयकार’ के सन्दर्भ में दुर्लभ तथ्यों को उपस्थापित किया है। उक्त दोनों संगीत मनीषी की जीवनयात्रा भी स्वतः में अनुपम रही। सन्‌ 1880 में गोमन्तक (गोवा) प्रान्त के पर्वतशिखर पर इनका जन्म हुआ। कुलदेवता चन्द्रेश्वर भूतनाथ की अनन्य उपासना से कुलक्रमानुगत संगीत विद्या में पूर्व-पूर्वजों के कृपाप्रसाद से ऐसी ख्यातिलब्ध की, जो इतिहासप्रसिद्ध हो गयी। दोनों साधकों के जीवनी से सम्बन्धित अनेक अप्रसिद्ध दस्तावेज,जो दस-पाँच प्रतिशत संगीतशास्र के विद्वानों को ही विदित है, ऐसे महान्‌ तपःपूत साथकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को आधार मान कर इस कृति की संरचना हुई।

स्व. लक्ष्मणराव संगीत विद्या के विविध क्षेत्रों में यथा-नाट्यसंगीत, भजन, तबला, पखावज आदि में निपुण थे। इन्होंने कठिन साधना से इस विद्या में उच्चोच्च कीर्तिमान भी स्थापित किया, जिन्हें संगीतकारगण पूर्ण सम्मान के साथ ‘लयविद्या के सम्पूर्ण पंचाङ्ग’ के रूप में स्वीकार करते थे। ‘खाप्रूमाम-खाप्रूमामा-लयभास्कर’ आदि अनेक नाम, उपनाम एवं उपाधियों से इनकी पहचान तत्कालीन सामान्य जनमानस में सुप्रसिद्ध रही।

उस काल में नेपालादि देशों में जिनका यश गूँजता था ऐसे कलाकार के आजन्म इतिवृत्त के एक-एक तिनके (तृण) को जोड़-जोड़ कर सामग्री का संकलन करना महाकवि कालिदास के शब्दों में ‘उडुपेनास्मि सागरम्‌’ की कल्पना को सार्थक करने जैसा श्लाघ्य प्रयास सम्पादिका का है।

‘आत्मा वै जायते पुनः’ वेदवाक्यानुरूप सम्पादिका ने दूसरे महान्‌ साधक अपने पिताश्री स्वर्गीय रामकृष्ण लक्ष्मणराव पर्वतकर, जो अपने पूज्य तातचरण (स्वर्गीय लक्ष्मणराव पर्वतकर) के सदृश अद्वितीय कलाकार, चित्रकार, लयकार आदि गुणों से परिपूर्ण थे तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मंच कला संकाय में जिनकी सेवाएं आज भी प्राचीन साधकों के स्मृतिपटल पर अमिट यादगार के रूप में अंकित है। ऐसे महान्‌ पिता-पितामह के त्याग एवं सेवाभाव को पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराना ‘मील के पत्थर के समान’ कार्य है।

स्वर्गीय रामकृष्ण लक्ष्मणराव पर्वतकर का संगीत की सभी विधाओं के अतिरिक्त इनका एक अद्भुत शौक था ‘पेन्सिल चित्रकारी का’। अनेकानेक क्षेत्रों के विशिष्ट लोगों की आकृति को तत्क्षण पेन्सिल से उकेरने की कला में इन्हें दक्षता प्राप्त थी, कुछ ऐसे दुर्लभ चित्र इस पुस्तक में चित्रित हैं।

इन दोनों ही विभूतियों के कला एवं विशिष्ट गुणों का प्रमाणमात्र सम्पादिका ही हैं ऐसा नहीं, अपितु जिनकी यशःसुरभि सात समुद्र पार भी थी, उनके सम्बन्ध में न केवल गोमन्तक विद्वानों, कलाकारों ने प्रत्युत अखिल भारतीय स्तर पर संगीतशाख्त्र के विद्वान्‌ लेखकों ने अपने लेख एवं वक्तव्य के माध्यम से प्रमाणित किया है।

वाराणसी को इस बात का गौरव है कि सुदूरप्रान्तीय शास्त्रीय संगीत के इस विशिष्ट विद्वान्‌ ने काशी में निवास करते हुए आन्त संगीत की साधना की, कुलपरम्परा का सम्यक्‌ निर्वाह किया, परिवार को अपनी विरासत सौंपी।

अतएव यह पुस्तक संगीत साधकों, अनुसन्धाताओं, गुणग्राहकों के लिये सर्वथा संग्रहणीय, पठनीय, मननीय एवं चिन्तनीय भी है।

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2016

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