Lhasa Ka Lahoo
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Description
ल्हासा का लहू
विस्तारवादी और बर्बर हुकूमतें किसी समाज को अपने नियन्त्रण में रखने के लिए उनकी सामूहिक स्मृतियों को नष्ट-भ्रष्ट कर देना चाहती हैं। सत्तर साल पहले चीनी क़ब्ज़े के बाद तिब्बती संस्कृति को समूल नष्ट कर देने की उसकी कोशिशों के ख़िलाफ़ अपनी क़लम से लड़ने वाले यहाँ संकलित युवा स्वतन्त्रता सेनानी कवि वैश्विक यथार्थ के दबाव में भले अपनी मातृभाषा छोड़कर अंग्रेज़ी में लिखने को मजबूर हुए लेकिन स्मृतियाँ भाषा की क़ैद से मुक्त रही हैं।
प्रख्यात कवि, अनुवादक अनुराधा सिंह पिछले कई बरस से तिब्बती कविताओं का परिचय हिन्दी पाठकों से करवाती रही हैं और अब इस विशद संकलन के साथ उपस्थित हुई हैं। हिन्दी की दुनिया में निश्चय ही इसका उत्साहपूर्ण स्वागत होगा।
– यादवेन्द्र वरिष्ठ कवि, प्रख्यात अनुवादक, विचारक
तिब्बत को बहुधा गीत, संगीत व कविता की भूमि कहा जाता रहा है। इसकी वैभवशाली नदियों की तरह उत्कृष्ट काव्य परम्परा भी पूरी सभ्यता में सतत प्रवाहमान है। तिब्बत की इस प्राचीन परम्परा ने निर्वासित तिब्बत में भी अपनी जड़ें जमा ली हैं और इसके इतिहास और पहचान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यह पुस्तक ल्हासा का लहू यक़ीनन हिन्दी में तिब्बत सम्बन्धी लेखन का प्रथम संचयन है। अनुराधा सिंह का समर्थ अनुवाद पाठकों के समक्ष एक नये संसार का द्वार खोलता है, उन्हें तिब्बती कवियों की रचनात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराने के साथ, एक परायी धरती पर रह कर लिखने की व्यथा का आस्वाद भी कराता है। भुचुंग डी. सोनम, प्रमुख निर्वासित तिब्बती कवि, सम्पादक, अनुवादक, चिन्तक व आन्दोलनकर्ता
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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