Mahila Aur Badalta Samajik Parivesh

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Mahila Aur Badalta Samajik Parivesh

Mahila Aur Badalta Samajik Parivesh

650.00 520.00

In stock

650.00 520.00

Author: Man Chand Khandela

Availability: 5 in stock

Pages: 300

Year: 2008

Binding: Hardbound

ISBN: 9788179102404

Language: Hindi

Publisher: Pointer Publishers

Description

महिला और बदलता सामाजिक परिवेश

यह सही है कि किसी समय भारतीय समाज के चिंतन का आधार ‘यत्र नारयस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ रहा है। लेकिन पिछले सैकड़ों सालों से समाज में रुढ़िवादि परम्पराओं, मान्यताओं और अंधविश्वासों का वर्चस्व रहा है। ऐसे वातावरण में महिलाओं का उत्पीड़न, शोषण और उपेक्षा चर्म सीमा पर रही है। यह सही है कि समय के साथ सब कुछ बदल जाता है और बदलाव की यह हवा महिलाओं को भी प्रभावित कर रही है। वर्तमान में महिलाएँ निरक्षरता, निश्क्रियता, विवाह के बाद पराधीनता, घुंघट तथा दोयम दर्जे की हैसियत, एवं ममता ही मर्यादा जैसी परम्पराओं और मान्यताओं को खुले रूप में नकारने लगी है। आज तलाक दो तरफा प्रवाह माना जाने लगा है। सिनेमा, नाटक और नौकरी करने वाली महिला को आमतौर पर अन्यथा नजर से नहीं देखा जाता है। महिला को बॉस के रूप में स्वीकारा जाने लगा है और पुलिस, फौज और खुफिया तंत्र आदि सभी पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में भी महिलाएँ अपना स्थान बनाने लगी हैं। ऐसे सभी परिवर्तन प्रगतिवादी और सकारात्मक ही कहे जायेगें लेकिन ऐसे परिवर्तनों के साइड इफैक्ट कम नहीं हैं।

आज परिवारों में विखंडन, सामाजिक मर्यादाओं में रहने से असहजता, तलाक देने में शीघ्रता, पारिवारिक सम्बन्धों में अनैतिकता, पहनावे में दिखावा, स्वभाव में कृत्रिमता, सोच में स्वार्थपरता, दृष्टिकोण में अधार्मिकता, धर्म और आध्यात्म में पाखण्डता और शिक्षा में अस्वाभाविकता तेजी से बढ़ती जा रही है। प्रश्न उठता है इसके लिए कौन, कितना और कैसे जिम्मेदार है ? ऐसे अनेकों प्रश्नों के उत्तर की प्राप्ति की-लालसा में पुस्तक ‘महिला और बदलता सामाजिक परिवेश’ में शालीनता और अश्लीलता के भँवरजाल, बालिका-भ्रूण हत्या के कलंक और आतंकित करने वाला भविष्य, कम उम्र की माताओं का मातम, बचपन को बिसारती मजबूरी, वृद्ध महिलाओं की व्यथा, विवाह संस्था को मिल रही चुनौतियाँ, परिवर्तन से प्रदूषित होता सामाजिक वातावरण एवं परिवर्तन आधारित एच.आई.वी. एड्स का आतंक जैसे विषयों का वर्तमान के संदर्भ और भविष्य की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में वस्तुनिष्ठ और तर्कपूर्ण विश्लेषण किया गया है।

लेखक का उद्देश्य केवल समस्याओं की विकरालता को प्रस्तुत करना भर नहीं है। उद्देश्य वास्तव में अन्ततः सकारात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु बहस को प्रारम्भ करना है। जिससे समरसतापूर्ण सामाजिक पर्यावरण का निर्माण सम्भव हो सके।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2008

Pulisher

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