Manto : Vibhajan Ki Kahaniyan
Manto : Vibhajan Ki Kahaniyan
₹300.00 ₹255.00
₹300.00 ₹255.00
Author: Narendra Mohan
Pages: 160
Year: 2017
Binding: Hardbound
ISBN: 9789385476242
Language: Hindi
Publisher: Aman Prakashan
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Description
मंटो : विभाजन की कहानियाँ
मंटो ने विभाजन को कैसे स्वीकारा या अस्वीकारा, उसकी विसंगति और विद्रूप को कैसे झेला या आत्मसात किया और यह त्रासदी उनकी कहानियों में किस रूप में प्रकट होती है, उसी का कथात्मक दस्तावेज है यह पुस्तक।
जहाँ तक मंटो की जीवनचर्या, घटनाएँ और उसके विचार गवाही देते हैं, विभाजन-पूर्व का हिन्दुस्तान उसके लिए जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों, तहजीबों और भाषाओं का मिलन-बिन्दु था, जिसके विभिन्न रंगों को उसने अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में देखा ही न था, दिल की गहराइयों से महसूस भी किया था। जलिया वाला बाग का नरसंहार, विभाजन तक की घटनाओं की जाँच उसके भीतर चलती ही रहती थी। यह तो तय है कि साम्प्रदायिक भावना उनमें लेश मात्र भी न थी-रिश्तों में, न दोस्ती में न विचारों में, व्यवहारों और आचरणों में नहीं, साम्प्रदायिक हिंसा का खंडन करते हुए तब तक वह कई लेख अफसाने लिख चुका था।
मंटो का साहित्य, खास तौर पर विभाजन सम्बन्धी साहित्य जिसमें मंटो के वे अफ़साने, लेख, संस्मरण और ख़तूत शामिल है, अपने समय और उस समय के लेखन के लिए, साहित्यिक बहसों और चर्चाओं के लिए ही चुनौतीपूर्ण नहीं था, आज भी और आज के हिन्दी, उर्दू और किसी भी भाषा के लेखक के लिए, आज की साहित्यिक बहसों और चर्चाओं के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, बनावट, कलाबाजी, लफ़्फाजी और छद्म के खिलाफ, आडम्बर और पाखंड को उधेड़ने वाला। वह जिसे सच मानता था, उसे कहता था बिना किसी लिहाज के, अक्सर फटकार कर और वही लिखता था बिना डरे, बिना दबे।
अपने विद्रोह, गुस्से और अवसाद को कई स्तरों पर कहानियों में जुबाँ देने वाला, कई तरह की बेचैनियों से जूझने वाला लेखक, आप की बताइये किसी पार्टी, संघ या किसी एक विचार से कैसे बंधा रह सकता है ? ठीक ही है उसने न आधुनिकतावादी ढाँचा-साँचा कबूल किया, न प्रगतिवादी। वह जिन्दगी की जुराब के धागे को एक सिरे से पकड़कर उधेड़ता रहा और उसके साथ हम सब उधड़ते चले गए।
आज के वक्त में जब हम विभाजन की खाई को भयानक रूप में चौड़ा होते हुए, नरक की गहराइयों में धँसता हुआ देख रहे हैं और विस्थापन के कई सिलसिलों से खुद को घिरा महसूस कर रहे हैं तो विभाजन और मंटो की याद आती ही है। साम्प्रदायिक दंगों की दहशत और दुश्मनी को, मंटो की तरह, एक बड़े झलक पर बेशक नहीं लेकिन ज्यादा विविध धरातलों पर, अपने घरों की चौखटों तक फैला हुआ हम देख रहे हैं। पाकिस्तान जाकर जैसे मंटो ने उस वक़्त के हुक्मरानों की सियासी हरामजदगियों और कट्टर मजहबी मानसिकता को साहस से तार-तार किया, क्या वैसा साहस हमारे वक़्त के लेखक दिखा पा रहे हैं ? आपको महसूस होने लगेगा कि आप मंटो और उसकी कहानियों के पात्रों से घिर गए हैं। बचाव का और कोई रास्ता नहीं है, सिवा सामना करने के जैसा मंटो ने किया और उसकी कीमत चुकाई। तीखा-सा सवाल यह है कि क्या हम रगों तक खिंच आए साम्प्रदायिक विभाजन का सामना करने के लिए, उसकी बेखौफ अभिव्यक्ति की कीमत चुकाने को तैयार है ? मंटो की ये कहानियाँ सीधे-सीधे इस प्रश्न का सामना करती है और आज की परिस्थति में नयी एवेयरनेस पैदा करती हैं।
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
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Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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