Marks Aur Pichhade Huye Samaj

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Marks Aur Pichhade Huye Samaj

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600.00 510.00

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600.00 510.00

Author: Ramvilas Sharma

Availability: Out of stock

Pages: 534

Year: 2007

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126703647

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

मार्क्स और पिछड़े हुए समाज

हिंदी के सुविख्यात समालोचक, भाषाविद् और इतिहासवेत्ता डॉ. रामविलास शर्मा का यह महत्तम ग्रंथ ‘भूमिका’ और ‘उपसंहार’ के अलावा आठ अध्यायों में नियोजित है। इनमें से पहले में उन्होंने आधुनिक चिंतन के पुरातन स्रोतों, मार्क्स के ‘व्यक्तित्व-निर्माण’ की दार्शनिक पृष्ठभूमि तथा मार्क्स-एंगेल्स की धर्म विषयक स्थापनाओं के प्रति ध्यान आकर्षित किया है। दूसरे में, सौदागरी पूँजी की विशेषताओं के संदर्भ में संपत्ति और परिवार-व्यवस्था की कतिपय समस्याओं का विवेचन हुआ है। तीसरे में, मध्यकालीन यूरोपीय ग्राम-समाजों और भारतीय ग्राम-समाजों में भिन्नता को रेखांकित किया गया है। चौथे में, प्राचीन रोमन-यूनानी समाज और प्राचीन भारतीय समाज में श्रम-संबंधी दृष्टिभेद का खुलासा हुआ है। पाँचवें में, मार्क्स-एंगेल्स पर हीगेल के दार्शनिक प्रभाव के बावजूद इतिहास-संबंधी उनकी स्थापनाओं में अंतर को विस्तार से विेवेचित किया गया है, ताकि हीगेल के यूरोप-केंद्रित नस्लवादी इतिहास-दर्शन को समझा जा सके। छठा अध्याय मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के जनवादी क्रांति-संबंधी विचारों, कार्यों से परिचित कराता है। सातवें में, क्रांति-पश्चात् सर्वहारा अधिनायकवाद, राज्यसत्ता में सर्वहारा पार्टी की भूमिका, फासिस्त तानाशाही से लड़ने की रणनीति तथा राज्यसत्ता के दो रूपों – जनतंत्र एवं तानाशाही – को अलगाकर देखने की माँग है और आठवाँ अध्याय दूसरे विश्वयुद्ध के बाद एशियायी क्रांति के संदर्भ में लेनिन की स्थापनाओं को गंभीरता से न लेने के कारण साम्राज्यविरोधी आंदोलन में विघटन का गंभीर विश्लेषण करता है।

संक्षेप में कहें तो डॉ. शर्मा की यह कृति विश्व पूँजीवाद और उसके सर्वग्रासी आर्थिक साम्राज्यवाद के विरुद्ध मार्क्सवादी समाज-चिंतन की रोशनी में विश्वव्यापी पिछड़े समाजों के दायित्व पर दूर तक विचार करती है, ताकि समस्त मनुष्य-जाति को विनाश से बचाया जा सके।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Pages

Publishing Year

2007

Pulisher

Language

Hindi

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