Mati Kahe Kumhar Se

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Mati Kahe Kumhar Se

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395.00 295.00

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Author: Harishankar Parsai

Availability: 5 in stock

Pages: 180

Year: 2014

Binding: Hardbound

ISBN: 9788170556756

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

माटी कहे कुम्हार से

‘‘परसाई एक खतरनाक लेखक हैं, खतरनाक इस अर्थ में कि उन्हें पढ़कर हम ठीक वैसे ही नहीं रह जाते जैसे उनको पढ़ने के लिए होते हैं। स्वतंत्रता के बाद हमारे जीवन मूल्यों के विघटन का इतिहास जब भी लिखा जायेगा तो परसाई का साहित्य संदर्भ-सामग्री का काम करेगा। उन्होंने अपने लिए व्यंग्य की विद्या चुनी, क्योंकि वे जानते हैं कि समसामयिक जीवन की व्याख्या, उसका विश्लेषण और उसकी भर्त्सना एवं विडंबना के लिए व्यंग्य से बड़ा कारगार हथियार और दूसरा नहीं हो सकता। व्यंग्य की सबसे बड़ी विशेषता उसकी तत्कालिकता और संदर्भो से उसका लगाव है। जो आलोचक शाश्वत साहित्य की बात करते हैं उनकी दृष्टि में व्यंग्य पत्रकारिता के दर्जे की वस्तु मान लिया जाता है और उन्हें लगता है कि साहित्यकार व्यंग्य का उपयोग चटखारेबाजी के लिए भले ही कर ले, किसी गम्भीर लक्ष्य के लिए उसका उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसे विचारकों ने साहित्य के लिए जो आदर्श स्वीकृत कर रखे हैं व्यंग्य उनकी धज्जियाँ उड़ाता है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं कि व्यंग्य लेखक ऐसे मर्यादावादियों की दृष्टि में हल्का लेखक, सड़क छाप लेखक या फनी लेखक होता है। व्यंग्य को साहित्य की ‘शेड्यूल्ड-कास्ट’ विद्या मान लिया गया है, पर कबीर को भी इन मर्यादावादी विचारकों ने कवि मानने से परहेज करना चाहा था।’’

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Authors

Binding

Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2014

Pulisher

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