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Description
नगर परिमोहन
कथानक की भूमि
आधुनिक सभ्यता के विकास के साथ-साथ जनता देहातों से निकलकर नगरों की ओर आ रही है। इसमें कारण है-भौतिक विज्ञान में उन्नति।
सड़कें, नालियाँ, बिजली, पानी, भव्य भवन तथा अन्य सुख के सामान विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ नगरों में उपलब्ध होते जाते हैं। इन सब साधनों की प्राप्ति में धन व्यय होता है। अतएव नगरों में रहने और शारीरिक सुख-सुविधा प्राप्त करने के लिए धन अत्यन्त आवश्यक वस्तु हो गई है।
परन्तु जहाँ नगरों में धन के व्यय करने के स्थान है वहाँ धनोपार्जन के स्रोत नहीं हैं। वास्तविक धन उत्पन्न होता है, परिश्रम और भूमि से। ये दोनों वस्तुएँ नगरों में नहीं हैं। न तो वहाँ भूमि है और न ही वहाँ पर परिश्रम करने वाले लोग हैं।
इस पर भी धन संचित मिलता है नगरों में। यह धन कैसे नगरों में आता है ? इस प्रश्न का उत्तर ही नगर और गाँव की समस्या को सुलझाने में सहायक हो सकता है। वास्तविक धन (Real wealth) का स्रोत नगर नहीं हैं। यह देहात अथवा उन स्थानों में जो नगर के बाहर हैं, उत्पन्न होता है। लहलहाते खेतो में, भूमि के गर्भ में खोदी खानों में तथा सागर तल पर धन के स्रोत हैं। इन स्रोतों से धन निकलता है मानव परिश्रम से। परिश्रम के फल को बढ़ाकर कई गुणा करने की शक्ति है मशीनों में।
इनमें से किसी का भी अटूट सम्बन्ध नगरों से नहीं है। प्रायः देखा जाता है कि नगरों में भी परिश्रम करने वाला वर्ग कुछ अधिक धन नहीं रखता। धन तो नगरों में उन्हीं के पास एकत्रित होता रहता है, जो किसी प्रकार की हेराफेरी करने में चतुर हैं।
नगरों में धन एकत्रित करने वाले जहाँ अपने परिश्रम और बुद्धि का प्रयोग करते हैं, वहाँ वे हेराफेरी के उपाय भी प्रयोग में लाते हैं। केवल परिश्रम और बुद्धि के प्रयोग से उतना-कुछ प्राप्त नहीं हो सकता, जितना नगरों में सुख-सुविधा के लिए आवश्यक होता है।
इस प्रकार वास्तविक धन पैदा करने वाले तो, चाहे नगर में रहें चाहे देहात में, विज्ञान से प्राप्त सुख-आनन्द का भोग नहीं कर सकते।
अतः समस्या यह है कि धन पैदा करने वालों के लिए विज्ञान-जनित सुख सुविधा कैसे लाई जाए ? इसके लिए विज्ञान से प्राप्त सुविधाओं को देहातों तथा उत्पादन करने वाले श्रमिकों तक पहुँचाना ही नगरों के आकर्षण को मिटाने में समर्थ हो सकता है।
इस समस्या का विश्लेषण और उसका सुझाव ही इस पुस्तक का विषय है।
समस्या बहुरूपी है। सब-के-सब पहलुओं पर प्रकाश डालना तो सम्भव नहीं था, इस पर भी सिद्धान्त रूप में समस्या का निरूपण किया गया है।
वैसे तो यह उपन्यास ही है। इसमें पात्र, स्थान और काल सर्वथा काल्पनिक हैं। किसी भी व्यक्ति अथवा श्रेणी के मान-अपमान से इस कहानी का कोई सम्बन्ध नहीं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 1996 |
Pulisher |
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