Rachana Prakriya Se Joojhte Huye

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Rachana Prakriya Se Joojhte Huye

Rachana Prakriya Se Joojhte Huye

300.00 230.00

In stock

300.00 230.00

Author: Leeladhar Jagudi

Availability: 5 in stock

Pages: 136

Year: 2015

Binding: Hardbound

ISBN: 9789352290499

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

रचना प्रक्रिया से जूझते हुए

मैं कहना चाहता हूँ कि रचना प्रक्रिया का बखान करना कोई अच्छी-सी, आदर्श-सी चीज़ नहीं है। रचना की प्रक्रिया भी रचनाकार के जीवन में एक घटना या दुर्घटना की तरह घटित होती है। हर रचना के साथ उसका भला-बुरा इतिहास जुड़ा रहता है। घटना, दुर्घटना, अनुभव, अनुभूति इत्यादि को मिलाकर देखें तो वहीं-वहीं से रचना प्रक्रिया शुरू हो जाती है। क्योंकि रचना क्रिया होते हुए भी प्रतिक्रिया ज्यादा है। इस प्रकार क्रिया-प्रतिक्रिया की एक मानसिक प्रक्रिया का निर्माण करने लगते हैं। कहते हुए संकोच हो रहा है लेकिन कह ही देता हूँ कि रचना प्रक्रिया की पड़ताल में एक बात मुझे और याद आती है जो अज्ञान, मासूमियत और मूर्खता से सम्बन्धित है। इनका भी रचना प्रक्रिया में बहुत गहरा हाथ होता है। एक और बात याद आ रही है और वह है-स्वाध्याय। बल्कि यों कहूँ कि स्वाध्याय को आत्मसात् भी करना है और उसके दुष्प्रभाव से बचना भी है, यह रचना प्रक्रिया का, मैं समझता हूँ-बुनियादी संघर्ष है। स्वाध्याय अगर ‘दृष्टि’ के रूप में बदल गया है तो वह आपकी मदद कर सकता है अन्यथा वह आपकी सोच को सीमाओं में बाँध देगा।…

एक पाठक के रूप में मैं सबसे अच्छा रचनाकार उसे मानता हूँ जिसकी रचनाओं में अलग-अलग समय की बदलाहट और बनावट भी दिखती हो। केवल शिल्प बदलने से ही काम नहीं चलता, सम्पूर्ण कथ्य और उसकी समस्त भंगिमाओं में समय का रचाव और बदलाव चाहिए होता है। कुछ ऐसा बदलाव कि जिससे वही जाना हुआ रचनाकार बदला-बदला-सा लगने लगे। साफ़ दिखाई दे कि रचनाकार अच्छे या बुरे किसी बदलाव से प्रभावित है और इसीलिए वह कोई नकारात्मक या सकारात्मक बदलाव पैदा करना चाहता है। मैं इस तरह की जिम्मेदारियों को नहीं मानता कि कवि और लेखक का काम समाज सुधारक का काम है। बिगाड़े तो राजनीतिक और सुधारे लेखक, क्या दायित्वों का यह बँटवारा ठीक है ? पता नहीं रचनाकार का पहला काम क्या है शक्ल बनाना या आईना बनाना। क्या कुछ है जो इस दुनिया और ब्रह्मांड में घटित नहीं हुआ है और घटित नहीं हो रहा है ? पर क्या हम सब कुछ देख और समझ पा रहे हैं ? घटित होने को समझना ही अन्वेषण है। एक अच्छी रचना अन्वेषण नहीं है बल्कि घटित होना है। रचनात्मक स्तर पर अच्छी रचनाएँ भी घटित होती हैं, खोजी नहीं जातीं। घटित और अघटित के होने को नये सिरे से घटित होना पड़ता है। यही घटित होना सृजन है, ऐसा मैं अक्सर अनुभव करता हूँ। रचना के अस्तित्व के साथ-साथ अपना भी एक नया अस्तित्व घटित होने लगता है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

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