Rashtrabhasha Par Vichar

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Rashtrabhasha Par Vichar

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Author: Chandrabali Pandey

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9789392380631

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

राष्ट्रभाषा पर विचार

‘भाषा’ का प्रश्न राष्ट्रभाषा का प्रश्न बन गया। उर्दू सन् 1744–45 ई. में उर्दू में अर्थात् दिल्ली के लाल किला में बनी और मुगल शहंशाहों एवं दरबारी लोगों के साथ लखनऊ, अजीमाबाद (पटना) और मुर्शिदाबाद आदि शहरों में पहुँची। फारसी के साथ–साथ कंपनी सरकार के दरबार में दाखिल हुई और सन् 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज में जा जमी। फोर्ट विलियम कॉलेज की कृपा से वह ‘हिंदुस्तानी’ बनी और ‘हिंदी’ को ‘हिंदुई’ बता कर देश में फैलने का डौल डाला। फिर क्या हुआ इसका लेखा कब किसने लिया और आज कोई क्यों लेने लगा। आज तो 24 घंटे में इस देश के सपूत उर्दू सीख रहे हैं पर उर्दू का इतिहास मुँह खोलकर कहता है कि ‘हिंदी’ को उर्दू आती ही नहीं। और उर्दू के लोग उनकी कुछ न पूछिए। उर्दू के विषय में तो उन्होंने ऐसा जाल फैला रखा है कि बेचारी उर्दू को भी उसका पता नहीं। आज उर्दू क्या नहीं है ! घर की बोली से लेकर राष्ट्र की बोली तक जहाँ देखिए वहाँ उर्दू का नाम लिया जाता है और कहा यह जाता है कि वास्तव में यही सब की बोली है। इस ‘सब की’ का अर्थ ? उर्दू का कुछ भेद खुला तो ‘हिंदुस्तानी’ सामने आई और खुलकर कहने लगी-यह भी सही, वह भी सही, यह भी नहीं, वह भी नहीं, हिंदी भी, उर्दू भी, फारसी भी, अरबी भी, संस्कृत भी, ठेठ भी, पर नहींय सबकी बोल–चाल की भाषा। ‘बोलचाल की भाषा’ का अर्थ ? बोलचाल की भाषा अभी नहीं बनने को है।

— चन्द्रबली पाण्डेय

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2023

Pulisher

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