Ritikavya

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Author: Nandkishore Naval

Availability: 5 in stock

Pages: 128

Year: 2013

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126725694

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

रीतिकाव्य

हिन्दी की मध्यकालीन श्रृंगारिक रचना की पर्याप्त कुत्सा की गई है। उसे सबसे प्रथम तो सार्वजनिक रचना माना गया है। अवस्था, परिस्थिति आदि के कारण रचना में भेद होता है, इस नियम की भी छूट उसे नहीं दी गई है। काव्य-परम्परा की भी छूट मिलती है। पर उसे किसी प्रकार की छूट नहीं दी गई और छूटकर उसकी निन्दा की गई। हिन्दी की समस्त रचना का यदि साहित्यिक दृष्टि से विचार किया जाए तो हिन्दी का श्रृंगार-काल ही उसका अनारोपित काव्यकाल दिखता है। उसमें जितने अधिक उत्कृष्ट कवि हुए उतने किसी युग में नहीं। उस युग की रचना भी परिमाण में बहुत है। यदि उसका सारा वाङ्मय प्रकाशित किया जाए तो युगों में प्रकाशित हो सकेगा। शृंगार की एक से एक उत्कृष्ट उक्तियाँ उसमें प्रभूत परिमाण में हैं, इतनी अधिक हैं कि संस्कृत साहित्य अत्यन्त समृद्ध होने पर भी उनकी बराबरी नहीं कर सकता। इस युग की श्रृंगारी अभिव्यक्ति में अनुवदन संस्कृत के अनुधावन पर नहीं है। उसमें मौलिक अभिव्यक्ति बहुत अधिक है। अभिव्यक्ति का आधार-विषय एक ही होने के कारण उक्तियाँ अवश्य मिलती-जुलती हो गई हैं। पर यह कहना ठीक नहीं है कि शृंगारकाल में केवल पिष्टपेषण ही हुआ है। उसने संस्कृत को भी प्रभावित किया है।

— विश्वनाथप्रसाद मिश्र

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2013

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