Sambhal Bhi Na Paoge

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Sambhal Bhi Na Paoge

Sambhal Bhi Na Paoge

295.00 245.00

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295.00 245.00

Author: Surajpal Chauhan

Availability: 5 in stock

Pages: 112

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9789390678297

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

सँभल भी न पाओगे

सूरजपाल चौहान की रचनाएँ सशक्त, हृदयग्राही एवं प्रभावशाली हैं।

– राधा वल्‍लभ तिवारी

सूरजपाल चौहान की कविताएँ सीधे आँखों में आँखें डालकर बात करती हैं। अनोखी कविताएँ हैं। दर्द और पीड़ा से कसकती और सच्ची !

– महावीर अग्रवाल

सम्पादक : ‘सापेक्ष’ दुर्ग छत्तीसगढ़

समकालीन दलित कवियों में सूरजपाल चौहान को विशिष्ट और चर्चित बनाने का काम उनकी कई रचनाओं ने किया है। उनकी कई रचनाएँ लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गयी हैं। कवि कर्म को यह सबसे बड़ा पुरस्कार है।

– डॉ. माणिक मृगेश

सूरजपाल चौहान की कविताएँ बहुत बड़ी कविताएँ हैं। कुछ कविताएँ उन्होंने गाँवों को लेकर लिखी हैं। कवि अपने समुदाय को एड्रेस कर रहा है और क्रिटिकल एड्रेस कर रहा है। वह एक सन्देश देता है।

– प्रो. केदारनाथ सिंह

सूरजपाल चौहान की कविताओं में गीत और छन्‍द एक अलग तरह की कलात्मक दुनिया का निर्माण करते हैं। कलात्मकता सिर्फ़ आभिजात्य वर्ग की बपौती नहीं है।

– विष्णु नागर

सूरजपाल चौहान के गीत और कविताएँ बदलाव का सन्देश देते हैं। हिन्दी दलित साहित्य में गीत विधा में सूरजपाल चौहान का कोई दलित कवि सानी नहीं है। आज दलित समाज की समझ में बदलाव लाने के लिए गीत एक सक्षम हथियार है जिस पर सूरजपाल चौहान को पर्याप्त महारत हासिल है। यह संग्रह उनके गीतों के लिए भी याद किया जायेगा।

– बाबा कानपुरी, नोएडा

सूरजपाल चौहान जी की कविताएँ पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं। सच को सीधे-सीधे कह देना उनकी विशेषता है। अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार किया है।

– अमित कुमार, गोरखपुर (उ.प्र.)

दलित साहित्यकार सूरजपाल चौहान, सामान्यतः उनकी ख्याति का दारोमदार बोल्ड दलित आत्मकथा लेखन पर निर्भर माना जाता है, लेकिन उनकी छवि बनाने में उनकी कहानियाँ, गीत और कविताएँ भी शामिल हैं। उनकी कविता का एक ख़ास मिज़ाज और अन्दाज़ है और वह है-अपनी बात की बेलाग अभिव्यक्ति !

– प्रो. दयाशंकर त्रिपाठी

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

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