Samvad Shastra

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Samvad Shastra

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Author: Dr. Ashish Dwivedi

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789393486141

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

संवाद शास्त्र

इन दिनों ज़िंदगी में जिस तरह से शब्‍दों की कट-पेस्‍ट’और विचारों की ‘असेंबलिंग’ चल रही है। भावनाएं मशीनी होती जा रही हैं। मैसेज भी अहसास के ‘लाइनलॉस’ के चलते प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा हैं। रिश्‍ते बेजान हो रहे हैं। अर्थी की तरह ढोये जा रहे हैं। तो ‘भावों को व्यक्त ना कर पाने या एक-दूसरे को ठीक से कम्युनिकेट’ ना कर पाने के इस मर्ज के सामने संवाद कला की वैक्सीन की ज़रूरत है। बल्कि तत्काल कोटे में लाए जाने की ज़रूरत है।

आशीष जी ने इस मायने में बहुत जबरदस्त काम किया है। वे ना सिर्फ़ तत्काल कोटे में इस किताब को ले आए हैं बल्कि ‘बात न पहुंचा पाना’‘बहुत कुछ अव्यक्त रह जाना’ …जैसी पीड़ा के ख़िलाफ़ बहुत मारक और सार्थक सूत्र लाने में भी सफ़ल रहे हैं। निश्चित तौर पर इसमें बहुत शोध, श्रम और समय लगा होगा। उनकी जीवट ही ऐसी है कि एक बार ठान लेने के बाद सार्थक रचने से पीछे नहीं हटते हैं।

मुझे इस किताब से गुजरने का मौका मिला। संवाद कला को लेकर कई तरह की गलतफहमियां दूर हुईं। एक नया नजरिया मिला। बह्म वाक्य जैसी बातें दिखाई दीं। अमृत मंथन के सार रूप में एक बात समझ में आई ‘यदि आप बेहतर श्रोता हैं तो आप बेहतरीन वक्ता बन सकते हैं !’

मुझे लगता है कि यही बात संवाद या कम्युनिकेशन कला की नींव जैसी है। आज इस बात को समझने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है क्योंकि इन दिनों बोलना तो सब चाहते हैं सुनना कोई नहीं चाहता है। ‘इफेक्टिव लिस्निंग’ के इसी अभाव से आजकल बातें कम्युनिकेट नहीं हो रही बल्कि ‘करप्ट’ हो रही हैं।

संक्षेप में कहूं तो यह किताब आपको इसी ‘संवाद करप्शन’ से ‘इफेक्टिव कम्युनिकेटर’ बनने के सफ़र पर ले जाएगी। तो इस सफ़र को तय करने के लिए अपनी सीट बेल्ट बांध लीजिए और इस घोषणा को ध्यान से सुनिए…

ज़िंदगी का कम्युनिकेशन पैटर्न बहुत सरल है। हम चार तरह से संवाद कला को अंजाम देते हैं। लिखकर, बोलकर, इशारों और बाडी लैंग्वेज से…इन चारों बातों पर आशीष जी ने बेहद गहराई से लेखन किया है। तो आइए संवाद सफ़र के कुछ मील के पत्थरों पर नज़र डालते हैं…

  1. संवाद की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण विषय है सुनना जिसे आमतौर पर संवाद में उस तरह से अंडर लाइन नहीं किया जाता। आम मान्यता है कि सुनना कोई विषय हो ही नहीं सकता, जबकि सच्चाई यह है कि सुनना एक प्रकार से बोलने की पहली पाठशाला है। यदि हमने संवाद कला में बोलने की दक्षता हासिल कर ली लेकिन सुनने का धैर्य न सीख सके तो सब व्यर्थ हो जाता है। इस लिहाज से यह पुस्तक बोलने के साथ सुनने के भी सारे सूत्र साझा करने वाली है।
  2. अपनी बात को सुरूचिपूर्ण और प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करने की कला सीखना। यह सबसे महत्वपूर्ण विषय है। हमें हर हाल में यह कला आना ही चाहिए। जब हम अपनी बात को लोगों के बीच इस ढंग से पहुंचाते हैं कि उसकी छाप सामने वाले के मन मस्तिष्क पर पढ़े तो हम संवाद की पहली सीढ़ी चढ़ लेते हैं। इसको पढ़ने के बाद आप निश्चित तौर पर बेहतर वक्ता बनेंगे। आपके सफल जीवन की शुरुआत का सबसे बड़ा रहस्य संवाद में ही छिपा है। इस नाते यह पुस्तक आपको उन सारे ज्ञात-अज्ञात पक्षों पर भी प्रकाश डालती है जो इस विषय को समझने के लिए अपरिहार्य हैं।
  3. इन बुनियादी बातों के अलावा कुछ ऐसी भी अबूझ और अनकही बातें भी हैं जिनके बगैर संवाद अधूरा ही रहता है। आपकी देहभाषा से लेकर आवाज की वाइब्रेशन भी संवाद में अहम भूमिका निभाते हैं। इस पुस्तक में उनकी भी चर्चा है। जाहिर है कि एक संवादक को ये तीनों तरह के मंत्र हमेशा उपयोगी होने वाले हैं। जब हम वक्ता के लिए निर्धारित योग्यताओं की बात करते हैं तो मन में सवाल आता है कि क्या हमारे अंदर भी इस तरह की कोई प्रतिभा है, यदि है तो क्या आपने किसी तरह उसको जाग्रत किया ? तो जवाब शायद न ही आएगा। हम सबके आसपास न जाने कितने ऐसे अनगढ़ वक्ता होंगे, जिन्हें तराशा नहीं गया। उन्हें बोलने के सामान्य नियमों की तक जानकारी नहीं है, बावजूद इसके वे बोलते हैं। यह पुस्तक उनको ध्यान में रखकर भी लिखी गई है ताकि वे अपने को परिष्कृत कर सकें। पुस्तक के पाठ यदि आपने जीवन में उतार लिए तो बातचीत की कला में पारंगत होने से कोई आपको रोकेगा नहीं। मंजिल पर आज नहीं तो कल पहुंचेंगे जरूर।

संवाद शास्त्र के सफ़र में सहयात्री बनने के लिए आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएं…

(पुस्तक के टिप्पणीकार अनुज खरे प्रख्यात पत्रकार, व्यंग्यकार हैं। इस समय टीवी टुडे ग्रुप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं)

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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