Sati Maiya Ka Chaura

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Sati Maiya Ka Chaura

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500.00 415.00

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Author: Bhairavprasad Gupt

Availability: 5 in stock

Pages: 487

Year: 2013

Binding: Hardbound

ISBN: 9788180317514

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

सती मैया का चौरा

‘सती मैया का चौरा’ में भैरवप्रसाद गुप्त गाँवों की मुक्ति का सवाल उठाते हैं। वे साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए किए जानेवाले संघर्ष को भी विस्तारपूर्वक अंकित करते हैं। उपन्यास की कहानी दो सम्प्रदायों के किशोरों—मुन्नी और मन्ने को केन्द्र में रखकर विकसित होती है। मन्ने गाँव के ज़मींदार का लड़का है, जबकि मुन्नी एक साधारण हैसियत वाले वैश्य परिवार से है। उनके किशोर जीवन के चित्र साम्प्रदायिक कट्टरता के विरुद्ध एक आत्मीय और अन्तरंग हस्तक्षेप के रूप में अंकित हैं।

भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में ही उत्पन्न साम्प्रदायिक राजनीति की शक्तियाँ गाँव को भी प्रभावित करती हैं। सती मैया के चौरा के लिए शुरू हुआ संघर्ष उन निहित स्वार्थों को निर्ममतापूर्वक उद्घाटित करता है जो धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लोक-चेतना और लोक-संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करते हैं। ‘हिन्दू-मुसलमान की बात कभी अपने दिमाग़ में उठने ही न दो, यह समस्या धार्मिक नहीं राजनीतिक है और सही राजनीति ही साम्प्रदायिकता का अन्त कर सकती है।’ यह सही राजनीति क्या है? ‘मैं कभी भी महत्त्वाकांक्षी नहीं रहा। धन, यश, प्रशंसा को कभी भी मैंने कोई महत्त्व नहीं दिया। पढ़ाई ख़त्म होने के बाद जो तकलीफ़ मैंने झेली, उसमें और आश्रम के जीवन में जो भी ग्रहण किया है, सच्चाई से किया है। आश्रम, जेल जीवन और पार्टी जीवन ने मुझे बिलकुल सफ़ेद कर दिया, सारी रंगीनियों को जला दिया…मैंने जीवन में जो भी ग्रहण किया है, सच्चाई से किया है। आश्रम में, जेल जीवन में, पार्टी जीवन में और अब पत्रकारिता और लेखक के जीवन में…।’

‘सती मैया का चौरा’ भैरवप्रसाद गुप्त का ही नहीं, समूचे हिन्दी उपन्यास में एक उल्लेखनीय रचना के रूप में समादृत रहा है।

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Hardbound

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Publishing Year

2013

Pulisher

Language

Hindi

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