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Description
सोने की सिकड़ी : रूपा की नथिया
संताल आदिवासी समुदाय झारखंड की आबादी का एक मुख्य हिस्सा है। यहाँ के तेजी से बदलते सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में संताल लोगों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। संताल परगना के प्रमण्डलीय मुख्यालय दुमका को झारखण्ड की ‘उप-राजधानी’ का दर्जा दिया गया है जो इसकी महत्ता को स्वतः उजागर करता है। आज की बदली हुई स्थिति में संताल आदिवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन शोध एवं अध्ययन की आवश्यकता प्रबल होती जा रही है।
संताल आदिवासियों के बीच अलग-अलग मौसम, त्योहार और अवसरों के लिए अलग-अलग गीतों के विधान हैं। दोङ अर्थात् विवाह गीतों के अतिरिक्त सोहराय, दुरूमजाक्, बाहा, लांगड़े रिजां मतवार, डान्टा और कराम संताल परगना के प्रमुख लोकगीत हैं।
बापला अर्थात् विवाह संताल आदिवासियों के लिए मात्र एक रस्म ही नहीं, वरन् एक वृहत् सामाजिक उत्सव की तरह है जिसका वे पूरा-पूरा आनन्द उठाते हैं। इसके हर विधि-विधान में मार्मिक गीतों का समावेश है। इन गीतों में जहाँ आपको आदिवासी जीवन की सहजता, सरलता, उत्फुल्लता तथा नैसर्गिकता आदि की झलक मिलेगी, वहीं उनके जीवन-दर्शन, सामाजिक सोच और मान्यता, जिजीविषा तथा अदम्य आतंरिक शक्ति से भी अनायास साक्षात्कार हो जाएगा। परम्परागत संताली जीवन विविधतापूर्ण है जिसकी एक झलक प्रस्तुत करने की दिशा में हमने यह प्रयास किया है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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