किशोरावस्था से सतत् लेखन कर रहे प्रकाश बियाणी मूलतः बैंकर हैं। भारतीय स्टेट बैंक में 25 साल (1968-1995) नौकरी करने के बाद वे आठ साल देश के अग्रणी समाचार पत्र समूह ‘दैनिक भास्कर’ में कार्पोरेट संपादक रहे हैं। देश के औद्योगिक परिदृश्य व उद्योगपतियों पर उनके दो हजार से ज्यादा लेख/साक्षात्कार/समीक्षाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। इस दौरान उन्हें देश के कई अग्रणी उद्योगपतियों से प्रत्यक्ष मुलाकात का सुअवसर भी मिला है एवं राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बिजनेस मीट/ इवेंट्स में शिरकत करने का मौका भी। इन दिनों वे कार्पोरेट जगत व कंपनी मामलों पर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। आपकी पुस्तक ‘शून्य से शिखर’ (35 भारतीय उद्योगपतियों की यशोगाथा) को पाठकों खासकर बिजनेस स्कूल के छात्रों ने खूब सराहा है। अपने किस्म की इस अनूठी पुस्तक का द्वितीय संशोधित संस्करण एवं पेपरबैक संस्करण भी एक साल में मार्केट में लांच हो चुके हैं।
‘जो समाज धनोपार्जन करने वाले लोगों को कोसता है वह दरिद्रता में जीता है’ – स्व. धीरूभाई अंबानी के इस कथन से सहमत होते हुए श्री बियाणी का मत है कि राष्ट्रीय संपदा का समाज के हर वर्ग में न्यायोचित वितरण होना चाहिए। वे मानते हैं कि प्रतिस्पर्धा के ताजा दौर में केवल सर्वश्रेष्ठ ही बचेंगे पर शिक्षित व अशिक्षित अथवा कुशल व अकुशल हर शख्स को रोजगार के अवसर मिलना चाहिए। तद्नुसार यदि अब कोई चूक न हुई तो उदारीकरण व आर्थिक सुधार कार्यक्रम का दूसरा दौर देश के हर वर्ग को उनके वाजिब हक दिलवाएगा। इतिहास से सबक लेने की मंशा से लिखी गई है यह पुस्तक : ‘जी, वित्तमंत्रीजी’।
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