Adhyatmik Kathayen

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Adhyatmik Kathayen

Adhyatmik Kathayen

80.00 79.00

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80.00 79.00

Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 5 in stock

Pages: 192

Year: 2015

Binding: Paperback

ISBN: 9788131002896

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

दो शब्द

पुस्तक आरंभ करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आध्यात्म आखिर है क्या ? अध्यात्म क्षमा और शांति की ऐसी कुंजी है जिसके माध्यम से व्यक्ति को यह ज्ञान होता है कि वह स्वयं क्या है ? अध्यात्म हमें बताता है कि हमारा असली ‘आपा’ हमारी आत्मा है। यह इस बात का अनुभव कराता है कि हम मात्र शरीर या मन नहीं, बल्कि वह आत्मा हैं जो हमारे इस शरीर में बस रही है। हम अपने आपको सिर्फ एक शरीर समझते हैं जिसका कि एक नाम है। इस तरह हम अपने आपको भारत, फ्रांस, अमेरिका अथवा किसी भी देश का नागरिक समझते हैं या फिर किसी एक अथवा दूसरे धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं, पर, अध्यात्म के द्वारा हम यह जान जाते हैं कि इन सभी भिन्न-भिन्न बाहरी नामों और ठप्पों के पीछे, मूलतः हम सभी आत्मा हैं और एक ही परमपिता के अंश हैं।

प्रश्न उठता है कि हम आध्यात्मिक क्यों बनें ? क्या फायदा है आध्यात्मिक बनने का। उत्तर स्पष्ट है। अध्यात्म के द्वारा हम सहानुभूति, परस्पर मैत्री की भावना, क्षमा और शांति की भावना को जाग्रत करते हैं। जब हमारा दृष्टिकोण आध्यात्मिक बन जाता है, तब हम किसी को भी पक्षपात या भेदभाव की दृष्टि से नहीं देखते। हम उन दीवारों को हटाने लग जाते हैं जो मानव-मात्र को एक-दूसरे से अलग करती हैं। हम यह अनुभव पाने लगते हैं कि आत्मिक स्तर पर हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब हम अपनी एकता और अपने आपसी संबंधों की पहचान कर लेते हैं तो फिर हम एक-दूसरे की सहायता करने लगते हैं। तब हमारे सोचने की विचारधारा में अंतर आ जाता है। पड़ोस में भूख से रोते बच्चे की आवाज से हमें उतनी ही तकलीफ होती है जितनी कि अपने बच्चे के रोने से। हम सड़क पर बेसहारा घूमते बूढ़े इंसान में अपने बेसहारा दादा को देखते हैं और उसकी मदद को प्रेरित होते हैं। हमारा दृष्टिकोण विशाल हो जाता है।

हम सभी यदि संकल्प करें, इरादा करें तो अपना आध्यात्मिक पक्ष मजबूत कर सकते हैं। सदियों से इसके लिए एक समाधान उपलब्ध है। ध्यान-साधना की विधि को सीखकर हम प्रतिदिन कुछ समय अपने अंतर में प्रभु के साथ गुजार सकते हैं। जैसे-जैसे प्रभु हमें प्रेम और आनंद से सराबोर करेगा, वैसे-वैसे हमारी वे पुरानी आदतें धुलती चली जाएंगी जिनके कारण हम नफरत और पक्षपात से भरे रहते हैं। हममें प्रेम, क्षमा और दया के गुण भर देता है।

हममें से बहुत सारे लोग प्रभु को पाने या देखने की तीव्र अभिलाषा रखते हैं। प्रभु को पाना ही हम सबका एकमात्र सपना होता है। इसके लिए प्रायः लोग एक टेक्नीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसे हम अंतर्मुख होना, एकाग्र होना, ध्यान टिकाना या ‘मेड़ीटेशन कहते हैं। जब वे शांत चित्त होकर बैठते हैं और अपने ध्यान को अंतर में टिकाते है तो उन्हें आत्मा का साक्षात्कार होता है, जो वास्तव में परमात्मा का ही एक अंश है। जब हम ऐसा करते हैं तो हम भी वही अवस्था पाते हैं जो हमारे महान संतः महात्माओं ने पाई थी। इसी दिव्य अनुभूति को लोग प्रभु-दर्शन मानते हैं। सदियों से प्रभु-मिलन की जो बातें हमें सुनने को मिलती हैं वह इसी अवस्था में अभेद हो जाने की स्थिति है।

अध्यात्म का गरीबी या अमीरी से कोई रिश्ता नहीं होता। यदि कोई रिश्ता होता तो श्रीकृष्ण सोने की द्वारका क्यों बसाते ? कभी श्रीकृष्ण को सादे वस्त्रों में देखा है आपने ? जब देखिए सजे-धजे आभूषण-अलंकारों से सुसज्जित रहते हैं। इसका अर्थ यह न समझें कि उन्होंने कभी गरीबों से प्रेम किया ही नहीं। भगवान कृष्ण ने सदैव ही गरीबों से प्रेम किया है और यही शिक्षा सारे संसार को दी है। कौन भूल सकता है कृष्ण-सुदामा की मैत्री को। सुदामा जैसे दरिद्र ब्राह्मण का उद्धार क्या कृष्ण के बिना कोई और कर सकता था। भगवान तो घट-घट में निवास करते हैं। वे सबके मन को जानते हैं। हां, यह बात अलग है कि वे सबको अपने-अपने कर्मों के अनुसार उसका प्रतिफल देते हैं-

‘राम झरोखा बैठ के सबका मुजरा लेय

जैसी जाकी चाकरी, प्रभु तैसा वाको देय’

अंत में यही कहना चाहूंगा कि आध्यात्मिक बनिए। अध्यात्म की दृष्टि से देखिए, फिर आपको जो आत्मिक सुख मिलेगा वह संसार के भौतिक पदार्थों से बिलकुल ही अलग होगा।

गंगाप्रसाद शर्मा

कथा की कथा

घटनाओं और चरित्र की शब्दमयी प्रस्तुति होती है कथा। घटनाएं जहां कथा को रोचकता प्रदान करती हैं वहीं ये कसौटी हुआ करती हैं चरित्र की भी। चरित्र का निर्माण ही वह केन्द्र बिन्दु होता है जिसके लिए कथाओं का भारतीय संस्कृति में प्रचार-प्रसार हुआ है। क्योंकि इसमें प्रयुक्त भाषा सरल-सुगम होती है इसलिए एक साधारण व्यक्ति इन्हें पढ़ता-सुनता है। और पढ़ने सुनने की यह प्रक्रिया इतनी सूक्ष्म व अलौकिक होती है कि पाठक-श्रोता को इस बात का अहसास ही नहीं हो पाता कि कब कथा का कथ्य उसके अचेतन की गहराइयों में उतर जाता है तथा साधारण-सी लगनेवाली कथा उसके जीवन में ऐसी दिव्य क्रांति कर देती है कि उसका सर्वस्व परिवर्तित हो जाता है। इसलिए अनुपमेय है कथा की कथा।

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Authors

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Paperback

ISBN

Pages

Language

Hindi

Publishing Year

2015

Pulisher

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