Ayurved Kriya Sharir

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Ayurved Kriya Sharir

Ayurved Kriya Sharir

650.00 550.00

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650.00 550.00

Author: Vaidya Ranjeetrai Desai

Availability: 2 in stock

Pages: 898

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 0000000000000

Language: Hindi

Publisher: Shree Baidyanath Ayurved Bhawan Pvt. Ltd.

Description

आयुर्वेदीय क्रियाशारीर

प्रस्तावना

इस समय आयुर्वेद के अध्ययन-अध्यापन के लिए विषयप्रधान शिक्षण-पद्धति को उपयुक्त माना गया है। इस पद्धति से प्रत्येक विषय का साङ्गोपाङ्ग ज्ञान सहज में होकर विषय अच्छी तरह समझा जा सकता है। आयुर्वेद के संहिता-ग्रन्थों में प्रायः सब विषय एक ही ग्रन्थ के भिन्न-भिन्न अध्याय (प्रकरणों) में इतस्ततः बिखरे हुए तथा कुछ विषय एक ग्रन्थ में तो अन्य विषय अन्य ग्रन्थ में पाए जाते है। उनके व्याख्याकारों ने अपनी शैली से उन विषयों पर पर्याप्त प्रकाश डाला है और सूत्ररूप से संक्षेप में लिखे गये विषयों का स्पष्टीकरण किया है। उन सबको एकत्र तथा प्रकरण-बद्ध करके प्रत्येक विषय पर संग्रहात्मक या स्वतन्त्र ग्रन्थ निर्माण होना इस समय अत्यन्त आवश्यक है। इसके अतिरिक्त इस समय चिकित्साविज्ञान में अनेक नये आविष्कार हुए हैं। उनको भी आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान से यथावश्यक संगृहीत करके यथासंभव प्राचीन और प्राचीन न मिलें वहाँ आयुर्वेदानुकूल नवीन संज्ञाओं में लिखकर पाठथ-ग्रन्थों में समाविष्ट कर लेना चाहिये, जिससे वह ग्रन्थ प्राचीन और आधुनिक दोनों प्रकार के विषयों को एक ही ग्रन्थ द्वारा पढ़ाने में उपयुक्त हो सके। यह आयुर्वेदीय क्रिया शारीर ग्रन्थ इसी दृष्टि को सामने रख कर इसके विद्वान्‌ लेखक ने लिखा है और लेखक को इस कार्य में यथेष्ट सफलता मिली है।

शारीर चिकित्सा विज्ञान का आधार भूत विषय है। बिना शारीर ज्ञान के रोगों का सम्यक्‌ निदान और चिकित्सा करना संभव नहीं है। शारीर विज्ञान के इस समय मुख्य दो विभाग किये जाते हैं-शरीर रचना विज्ञान और शरीर क्रिया विज्ञान। शरीर रचना विज्ञान में शरीर के अस्थि, धमनी, सिरा, नाडी, आशय आदि अवयवों की रचना-गणना आदि विषयों का वर्णन किया जाता है। शरीर क्रिया विज्ञान में शरीर के प्रत्येक सुक्ष्म-स्थूल अवयवों की क्रियाओं का वर्णन किया जाता है। आयुर्वेद में शरीर के अवयवों की क्रियाओं का वर्णन प्रायः स्वतन्त्न रूप से न करके दोषों, धातुओं और मलों की क्रियाओं के रूप में किया गया है। प्राचीनों ने मनुष्य-शरीर में पाये जाने वाले और उस समय आविष्कृततम भिन्न-भिन्न द्रव्यों (अवयवों) को, जिनके आधुनिक क्रियाशारीरविदों ने भिन्न-भिन्न नाम रखे हैं और उनकी क्रियाओं का स्वतन्त्र वर्णन किया है – उन सबको दोष, धातु और मल इन तीन वर्गों में विभक्त करके उनकी क्रियाओं का वर्णन किया है। रचनाशारीर पर स्व० महामहोपाध्याय कविराज श्री गणनाथ सेनजी ने प्रत्यक्षशारीर और स्व० बा० वैद्य पी०एस० बारियर ने अष्टाङ्गशारीर तथा ब्‌हच्छारीर का प्रथम खण्ड ये दो स्वतन्त ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे हैं। इन तीनों में म०म० कविराज श्री गणनाथ सेनजी विरचित प्रत्यक्षशारीर ग्रन्थ विशेष अच्छा है। इससे अच्छा ग्रन्थ जब तक इस विषय पर न लिखा जावे तब तक रचनाशारीर का विषय इस ग्रन्थ द्वारा वर्तमान आयुर्वेद विद्यालयों में पढ़ाना चाहिये। क्रियाशारीर पर पाठ ग्रन्थ तया उपयुक्त हो ऐसे एक ग्रन्थ की आवश्यकता थी जो इस ग्रन्थ के द्वारा पूरी हो सकेगी ऐसा मेरा विश्वास है।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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