Bhushundi Ramayan (Aadi Ramayan)

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Bhushundi Ramayan (Aadi Ramayan)

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1,800.00 1,760.00

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Author: Pandit Jatashanker Dikshit 'Shastri'

Availability: 9 in stock

Pages: 1344

Year: 2020

Binding: Hardbound

ISBN: 0000000000000

Language: Sanskrit & Hindi

Publisher: Bhuvan Vani Trust

Description

भुशुण्डि रामायण (आदि रामायण)

भुशुण्डि रामायण की विशेषताएँ

वाल्मीकि रामायण के पश्चात् निर्मित एवं उपलब्ध रामायणों में कालक्रम की दृष्टि से भुशुण्डि रामायण प्राचीनतम् है। ग्रन्थ के अप्राप्त होने से उसकी वास्तविकता या भूल तत्व के छानबीन संभव नहीं हो सकी थी और कई लघु तथा विशालकाय नामशेष रामायणों को भाँति भुशुण्डि रामायण की भी गणना कल्पित रामायणों में की जाने लगी थी। इस ग्रन्थ की चर्चा शताब्दियों में रसिक सम्प्रदाय के आचार्यों, रामचरितमानस के टीकाकारों तथा अध्यात्म रामायण एवं मानस के प्रमुख स्रोतों के अनुसन्धाताओं की कृतियों में निरन्तर होती आयी है।

संस्कृत के इस विशाल ग्रन्थ की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

(1) श्रीराम-जन्म मुहूर्त तथा रामनवमी-जानकीनवमी पर्व मनाने का विधिवत् वर्णन – पूर्वखण्ड १०।२ में श्रीरामजन्म के मास, पक्ष, तिथि और नक्षत्र वर्णन सहित अभिजित नामक योग का भी उल्लेख है, जिसका निर्देष वा०रा० में नहीं है। साथ ही उत्तराखण्ड में रामनवमी व जानकीनवमी पर्व और व्रतानुष्ठान महिमा का विधिवत् वर्णन तथा उसको मनाने वाले मनुष्य को प्राप्त होने वाले लाभों का भी वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त अयोध्या, प्रमोदवनधाम, मन्दाकिनी, यमुना व सरयू नदी की उत्पत्ति तथा सरयू माहात्म्य का वर्णन किया गया है।

(2) महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम का तिथिवार वर्णन – सेतु निर्माण, सेतु पारकर लंका पहुँचना, अंगद का दूत रूई रूप में लंका आगमन, मेघनाद से प्रथम युद्ध व राम-लक्ष्मण का नागपाश में बँधना, कुम्भकर्ण वध, मेघनाद वध, राम-रावण युद्धावधि, रावण वध, विभीषण राज्याभिषेक, राम का अयोध्याप्रस्थान, भरत से मिलन, राज्याभिषेक व अयोध्या प्रवेश, जानकी-गर्भाधारण, सीतावनगमन, इत्यादि महत्वपूर्ण घटनाओं का तिथिवार वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

(3) भगवान् राम के बालचरित्न का अद्भूत वर्णन – वा० रा० में राम के बाल्यकाल और बाललीलाओं का वर्णन अत्यन्त संक्षिप्त है, परन्तु भू० रा० का यह प्रसंग अपेक्षाकृत विस्तृत तथा रोचक है। जिसमें – रावण से कुमारों की रक्षा हेतु दशरथ द्वारा उन्हें सरयू पर गोप प्रदेश भेजा जाता है। वहाँ श्रीराम ने पूतना व विकटासुर वध, कौसल्या को विश्वरूपदर्शन, माखनलीला, वत्सचारणलीला, इन्द्रमानभञ्जन एवं सीता व गोपियों संग दिव्य-रास लीलाएँ कीं।

(4) श्रीरामगीता तथा सहस्त्रनामकथन – भुशुण्डि रामायण में रामगीता को योजना पूर्वखण्ड (अध्याय 44 से 51) में है। इसके अन्तर्गत ब्रह्म राम द्वारा गोपियों को दिये गये भक्ति ज्ञानोपदेश का वर्णन है। रामगीता के इन तत्वपूर्ण उपदेशों से गोपियों के मानस नेत्र खुल गये और भावी वियोग से उत्पन्न उनकी चिन्ता दूर हो गयी। साथ ही ग्रन्थ में श्रीरामचन्द्रजी, सीताजी, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न तथा सरयूनदी के सहस्त्र नामों का वर्णन भी दिया गया है।

(5) दशरथ तीर्थयात्ना – भु० रा० की यह कथा सर्वथा नवीन है -जिसमे दशरथ तीर्थयात्ना का विस्तृत वर्णन किया गया है। दशरथ अपने ज्येष्ठ पुत्र राम पर शासन का भार सौंपकर सेवकों, साधु-सन्यासियों तथा अन्य प्रियजनों की एक विशाल मण्डली के साथ सप्तद्वीपस्थ तीर्थों का दर्शन करने के उद्देश्य से कैकेयी सहित प्रस्थान किये। काशी, प्रयाग, बदरी-केदारनाथ आदि तीर्थों का दर्शन करते हुए वे ब्रजप्रदेश पहुँचे। वहाँ शुकदेव ने स्वयं उपस्थित होकर राम द्वारा कृष्णावतार में की गयी समस्त मधुर लीलाओं एवं चरितों का वर्णन प्रस्तुत करते हुए उन्हें दिव्य-लीलास्थलों, मुख्य तीर्थों – गोवर्द्धन पर्वत, मधुरा नगरी और श्रीवृन्दावन धाम के माहात्म्य का वर्णन, दर्शन व महत्व समझाया।

(6) श्रीरामपादुका-राज्य-व्यवस्था तथा श्रीरामपादुका-कवच माहात्मय – भु० रा० में ‘पादुकाराज्य’ का विशद एवं रोचक वर्णन किया गया है। भरत श्रीराम की पादुकाओं को लाकर सिंहासनारूढ़ करके स्वयं नन्दिग्राम में तपोमय जीवन व्यतीत करने लगते हैं। इस बीच भरत राज्य-संचालन का समस्त कार्य पादुकाओं का आदेश लेकर करते रहे। रामपादुका-शासनकाल में घटित तीन-चार घटनाओं का उल्लेख करके यह प्रमाणित किया गया है कि भरत ने पादुकाओं के प्रभाव से निर्विघ्न तथा कल्यणकारी शासन-संचालन का कार्य किया। दक्षिण खण्ड अ० ५६ में वर्णित सनत्कुमार कृत शुभ पादुका-कवच मन्त्र के मूलपाठ को भी दिया गया है। इसका पाठ मन्त्र सिद्धि चाहनेवाले को सदा करना चाहिये। इस कवच का निरन्तर पाठ पूर्ण-पूर्ण परमानन्द को तत्क्षण प्राप्त कराता साथ ही सौभाग्य, प्रचुर भोग्य, आरोग्य, सर्वसम्पत्तियाँ, संसार में विजय – इसके करने से निश्चित की प्राप्त जाती हैं। श्रीरघुनन्दन के इस रहस्य श्रीपादुकाकवच को पढ़ते हुए धर्म-अर्थ-काम-मुक्ति को पाकर भक्ति सिद्ध मनुष्य भोग सागर में क्रीडा करता है।

(7) तांत्रिक प्रभाव – भु० रा० में कथात्मक वैशिष्ट्य तथा आध्यात्मिक तत्त्वों पर पूर्व मध्यकालीन तांत्रिक साधना का अत्यंत व्यापक एवं गंभीर प्रभाव लक्षित होता है। भु० रा ० के रचयिता ने पात्रों के शील-निरूपण तथा चरित-चित्रण में इन सभी साधनाओं के आधारभूत तत्वों का यथावसर सन्निवेश किया है। (देखें – अनुवादकीय पृष्ठ 17-28)

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Hardbound

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Language

Sanskrit & Hindi

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Publishing Year

2020

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