Chirswayamvara

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Chirswayamvara

Chirswayamvara

199.00 149.00

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199.00 149.00

Author: Shivani

Availability: 5 in stock

Pages: 131

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788183611183

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

चिरस्वयंवरा

अनुक्रम

  • उपहार
  • केया
  • चीलगाड़ी
  • पिटी हुई गोट
  • चिरस्वयंवरा
  • मास्टरनी
  • भूमि-सुता
  • विनिपात

उपहार

‘‘वाह, खूब मिलीं आप ! मेरी गाड़ी छूटने ही को है, भाग्य अच्छा था, जो आप पहले ही चौराहे पर मिल गईं….ऐ रिक्शावाले, चलो स्टेशन।’’

वह कूदकर मेरे पार्श्व में बैठ गया, साथ ही उसके घिनौने शरीर से आते दुर्गन्ध के भभके से मेरा माथा चकरा गया।

मैं भय से थर-थर काँप रही थी, वही था, एकदम वही।

मेरा रिक्शाचालक कटरा के उस भीड़-भरे चौराहे पर मेरा रिक्शा रोक, अपनी बीड़ी लेने गया ही था कि यह आ गया।

बार-बार अपनी कलाई पर बँधी काल्पनिक घड़ी देखता वह बड़बड़ाता जा रहा था, ‘‘अजीब झक्की है मेरा यार, यह भला कोई जगह है रिक्शा खड़ी करने की, सात बीस पर देहरा छूट जाएगी।’’

मैंने उसकी विवेकहीन, अमानवीय दृष्टि पहचान ली और दूसरे ही क्षण मैं कूदकर सड़कपर खड़ी हो गई। शायद इसी बीच कुछ राहगीर उस कौपीनधारी घिनौने पगले को, दोनों टाँग फैलाए, मेरी रिक्शा में बैठा देख चुके थे।

‘‘हाँ-हाँ, कौन है ससुरा, धरो ससुर के दो हाथ, बेहुदा बड़ा पागल बना फिरता है, कल भी इसने यूनिवर्सिटी जाती दो लड़कियों को छेड़ा था।’’ देखते-ही-देखते मेरी रिक्शा में बड़े प्रभुत्व से आसन जमाए पगले को भीड़ ने घेर लिया। एक चन्दनधारी प्रौढ़ रसिक-से दिखनेवाले व्यक्ति, जो शायद संगम-स्नान से लौट रहे थे, भीड़ देख रसास्वादन करने इक्का रोककर गरजे, ‘‘बदमाश है ससुरा, पागल-वागल कुछ नहीं है। दिन-दहाड़े राह चलती बहू-बेटियों से छोड़खानी करनेवालों का तो मुँह काला करना चाहिए।’’

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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