Do Akalgadh

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295.00 245.00

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Author: Balwant Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 448

Year: 2013

Binding: Paperback

ISBN: 9788180317446

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

दो अकालगढ़

पंजाब के जन-जीवन का जैसा जीवन्त चित्रण श्री बलवन्त सिंह ने किया है, वैसा हिन्दी के अन्य किसी भी लेखक ने नहीं किया है—विशेष रूप से पंजाब के सिखों के जीवन का। उनका पौरुष, शौर्य, स्वाभिमान शेखों और सौन्दर्य प्रियता के साथ-साथ उनकी ‘रफनेस’ और ‘रगेडनेस’ को भी बलवन्त सिंह ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में बड़े ही कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया है।

श्री बलवन्त सिंह का यह उपन्यास ‘दो अकालगढ़’ तो सिख-जीवन का एक महाकाव्य ही कहा जा सकता है। जीवन की उत्तप्तता से ओत-प्रोत सिखों के लिए किसी-न-किसी चुनौती का होना एक अनिवार्यता-जैसी है। जीवन के सद्-असद् पक्ष सदा उनके लिए चुनौतियाँ प्रस्तुत करते रहे हैं। ‘दो अकालगढ़’ की पृष्ठभूमि का निर्माण करनेवाले ‘उच्चा अकालगढ़’ और ‘नीवाँ अकालगढ़’ सिखों की ऐसी ही दो चुनौतियों के प्रतीक हैं।

उपन्यास का नायक दीदारसिंह ऐसी ही चुनौती को सरे-मैदान उछालकर अपनी छवी की नोक पर रोक लेने को आकुल रहता है। अल्हड़ साँड़नी पर सवार होकर वह डाके डालने, मेले घूमने, अपने मित्र की खातिर उसकी प्रेमिका का अपहरण करने तथा खूनखराबा करने में ही व्यस्त नहीं रहता, बल्कि उसके विशाल, पुष्ट और माइयों, सोहनियों और हीरों को लुभा लेनेवाले आकर्षक शरीर में एक प्रेमी का नाजुक दिल भी है। अपने खानदान के परम शत्रु सरदार गुलजारासिंह की अत्यन्त सुन्दर कन्या ‘रूपी’ को जिस कोमलता से वह उठाकर घोड़े पर सवार कर लेता है, उसे कोई देख पाता तो कहता कि हाय! यह हाथ तो बस फूल ही चुनने के लिए है, भला इन्हें छवियाँ चलाने से क्या काम ! पंजाब के जीवन की ऐसी चटख और मद्धम रगोरंग को गुलकारी केवल बलवन्त सिंह में ही पायी जाती है।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2013

Pulisher

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