Herbert

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Herbert

Herbert

125.00 110.00

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Author: Navarun Bhattacharya

Availability: 10 in stock

Pages: 120

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9788183612746

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

हरबर्ट

‘हरबर्ट’ मेरे मन-मस्तिष्क में लंबे समय से था। मूल विषय-वस्तु सुनिश्चित थी और कभी लगातार तो कभी उमड़ती-घुमड़ती-सी तो कभी तीव्रता से मुझे उद्वेलित करती आ रही थी। इसका रूप मेरे जेहन में आकार ले चुका था। फिर भी कवि मित्र और प्रभा के संपादक सुरजित घोष यदि जोर न डालते तो शायद कभी लिखा न जाता। और, जब लिखने बैठा तो एक अजीब काहिली थी मेरे भीतर।

लेकिन विषय के प्रति इतना जबरदस्त खिंचाव और उसका दबाव था कि लगातार लिखता चला गया। किस अध्याय में क्या होगा, सब जैसे पहले से तय था और होता चला गया, पर आखिरी अध्याय के वक्त एक बारगी मैं थम गया फिर कुछ लिखा जो मुझे खुद ही नहीं जँचा और काफी खराब बना। नया कुछ सूझ भी नहीं रहा था। आखिर मैंने इसके बारे में दो-चार दिन के लिए सोचना बिलकुल बंद कर दिया। फिर एक दिन अचानक बात बन गई और मैं लिख बैठा। इससे पहले मैंने कभी कोई बड़ा आख्यान नहीं लिखा। यह मेरा पहला उपन्यास है। उपन्यास लेखन की दृष्टि से नया अनुभव। विषय वस्तु के प्रति जिस खिंचाव और उसके दबाव की बात मैंने कही है। दरअसल उसका इन्वाल्वमेंट मुझे हरबर्ट के साथ ऐसी मनःस्थिति में ले गया था जो यातनापूर्ण ही कही जा सकती है। ऐसा प्रकाशन के लिए पांडुलिपि देते समय बहुत खराब लग रहा था।

ऐसा होना ठीक नहीं है। बाद में एक व्यक्ति के आब्सेस्ड चरित्र को लेकर न लिखे की सलाब दी। बात तो सोचने लायक है, लेकिन किया क्या जा सकता है ?

मैं एक हरबर्ट को जानता था। वह एक जमाने में मशहूर गुंडा था। और उससे जब मेरी मुलाकात हुई तब तक पक्का अफीमची बन चुका था। यह नाम उसी से लिया गया है। इस तरह भाँति-भाँति के हरबर्टों से मेरा साबका पड़ा है। उनके साथ मेरा काफी समय गुजरा है। उन्हीं से मुझे इस छूटे-छिटके, मड्ड समय का स्वर और मुखरता मिली। और जहाँ तक संरचना, ढाँचों और आकार का प्रश्न है, इस बारे में मैं हमेशा सचेत रहता हूँ। किसी समय मैंने तत्त्व विज्ञान का अध्ययन किया था। विज्ञान का छात्र रहा हूँ। सिमिट्री को लेकर मेरे भीतर एक आब्सेशन है। प्रकृति के भीतर कैसी सिमिट्री है। स्फटिक की निर्मिति मुझे विस्मित और अभिभूत करती है। दूसरे नाटक, और रंगमंच के लिए भी स्ट्रक्चर और सिमिट्री का महत्त्व देखा जा सकता है। सिमिट्री का महत्त्व संगीत में भी है।

लिखते समय मैं इस सिमिट्री या स्वर संगीत और स्ट्रक्टर या संरचना को लेकर सुनिश्चित हो लेना चाहता हूँ। यह उपन्यास लिखते वक्त दुनिया में वामपंथ की दशा-दिशा चिंताजनक हो चुकी थी। एक वामपंक्षी व्यक्ति और लेखक के बतौर यह दुसमय मेरे लिए बहुत ही पीड़ा-जनक और आघात पहुँचाने वाला रहा है। देखते ही देखते समाजवाद इतिहास हो जाएगा, व्यर्थ और हास्यास्पद बताते हुए इसका परित्याग किया जाएगा और अमेरिका में जो डेमो रिपब्लिकन फासीवाद चल रहा है। उसकी वकालत करने वाले कुछ बुद्धिजीवी इतिहास और विचारधारा आदि सबकुछ के खत्म हो जाने का फतला देंगे-यह स्वीकार कर पाना मेरे लिए संभव नहीं हो सकता था। हरबर्ट एक तरह से मेरा राजनीतिक प्रतिवाद है। कभी न कभी विस्फोट होगा ही। इसे कंप्यूटर, फैक्स, सेलुलर फोन कर्मचारी, पुलिस अथवा सबकुछ को खरीद फरोख्त का बाजार बनाकर भी रोका नहीं जा सकता। इसकी अनुगूँज इस उपन्यास में मिलेगी।

‘हरबर्ट’ में कलकत्ता शहर का भी इतिहास है और मनुष्य का भी। बेशक उतना ही, जितना कि मैंने देखा जाना है। एक तरह से उपन्यास के चरित्र हरबर्ट की असहायता मैंने भी भोगी है। इसी असहायता को एक आकार देने की कोशिश है यह उपन्यास।

– नवारुण भट्टाचार्य

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

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