Kahat Kabeer

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Kahat Kabeer

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199.00 149.00

In stock

199.00 149.00

Author: Harishankar Parsai

Availability: 5 in stock

Pages: 164

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788126728534

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

कहत कबीर

हरिशंकर परसाई के व्यंग्य को श्रेष्ठतम इसलिए कहा जाता है कि उनका उद्देश्य कभी पाठक को हँसाना भी नहीं रहा। न उन्होंने हवाई कहानियां बनीं, न ही तथ्यहीन विद्रूप का सहारा लिया। अपने दौर की राजनितिक उठापठक को भी वे उतनी ही जिम्मेदारी और नजदीकी से देखते थे जैसे साहित्यकार होने के नाते आदमी के चरित्र को। यही वजह है कि समाचार-पत्रों में उनके स्तंभों को भी उतने ही भरोसे के साथ, बहैसियत एक राजनितिक टिप्पणी पढ़ा जाता था जितने उम्मीद के साथ उनके अन्य व्यग्य-निबंधो को।

इस पुस्तक में उनके चर्चित स्तम्भ ‘सुनो भई साधो’ में प्रकाशित 1983-84 के दौर की टिप्पणियां शामिल हैं। यह वह दौर था जब देश खालिस्तानी आतंकवाद से जूझ रहा था। ये टिप्पणियां उस पूरे दौर पर एक अलग कोण से प्रकाश डालती हैं, साथ ही अन्य कई राजनितिक और सामाजिक घटनाओं का उल्लेख भी इनमें होता है। जहीर है खास परसाई-अंदाज में। मसलन, 21 नवम्बर, 83 को प्रकाशित ‘चर्बी, गंगाजल और एकात्मता यज्ञ’ शीर्षक लेख की ये पंक्तियाँ। ‘‘काइयां सांप्रदायिक राजनेता जानते हैं कि इस देश का मूढ़ आदमी न अर्थनीति समझता, न योजना, न विज्ञान, न तकनीक, न विदेश नीति। वह समझता है गौमाता, गौहत्या, चर्बी, गंगाजल, यज्ञ। वह मध्ययुग में जीता है और आधुनिक लोकतंत्र में आधुनिक कार्यकर्म पर वोट देता है। इस असंख्य मूढ़ मध्ययुगीन जान पर राज करना है तो इसे आधुनिक मत होने दो।’’

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Paperback

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Publishing Year

2023

Pulisher

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Hindi

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