Kalindi

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Kalindi

250.00 190.00

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250.00 190.00

Author: Shivani

Availability: 4 in stock

Pages: 196

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788183610674

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

कालिंदी

कालिंदी की वर्तुलाकार घुमेरों में लिपटी जन्मकुंडली अन्ना के सामने खुली धरी थी-श्री गणेशाय नमः-आदित्यादि ग्रहा सर्वो नक्षत्राणि चराशयः सर्वाकामा प्रयच्छन्तु यस्यैषां जन्मपत्रिका, श्रीमन् विक्रमार्क राज्य समयातीत श्री शालिवाहन शाके, उत्तरायणे, शिशिर ऋतौ, मासोत्तम मासे पौषमासे शुक्ले पक्षे दशम्यां बुधवासरे, सिंहलग्नोदये श्री कमलावल्लभपन्त महोदयानाम गृहे, भार्यो मयकुलानन्द दायिनी कमला, कुन्ती, कालिंदी नाम्नी कन्यारत्नम् जीन् अल्मोड़ा नगरे आक्षांशाः

अन्ना की आँखें भर आईं। उसने पुनः यत्न से कुंडली लपेट, बक्से में धर दी, कहीं कुंडली की अग्निगर्भा स्वामिनी स्वयं न आ जाएँ!

बेटी जन्मकुंडली हमेशा ऊपर से नीचे लपेटी जाती है, नीचे से ऊपर नहीं। पिता की अशरीरी आत्मा जैसे उसे सहसा कन्धा पकड़कर झकझोरने लगी-अपनी, विषाद की दुर्वह घड़ी में वह उस जन्मकुंडली को नीचे से ही लपेटे जा रही थी, अचकचाकर उसने अपनी भूल सुधारी और आँचल से आँखें पोंछ लीं। मयकुलानन्द दायिनी झूठे ही निकले-एक सिंह लग्न ही उसकी पुत्री की कुंडली में अपनी सार्थकता को सिद्ध कर सका था-उसकी दादी ने कहा था-तेवर तो इसके हमेशा ऐसे ही रहेंगे मुन्ना, सिंह लग्न में हुआ जो जातक करै सिंह की असवारी। तब अल्मोड़े में दो प्रख्यात गणक माने जाते थे : पंडित मोतीराम पांडे और पंडित रुद्रदत्त भट्ट। उनकी बनाई जन्मकुंडली का उन दिनों प्रचुर पारिश्रमिक भी देना होता था, पर जैसे एक डॉक्टर दूसरे हमपेशा डॉक्टर से फीस नहीं लेता, ऐसे ही मोतीरामजी ने अपने गुरुभाई रुद्रदत्त की पुत्री अन्नपूर्णा की कुंडली तब बिना कुछ लिये ही बनाई थी। जन्मकुंडली क्या थी-पूरी नौगजी नागपुरी साड़ी! नाना बेलबूटों से सुशोभित, गणेश की सुअंकित मुद्रा के नीचे सुन्दर मोती-से अक्षरों में लिखी लिपि में अन्ना की ललाट गणना जिस दक्षता से मोतीरामजी कर गए थे, उसे विधाता भी पढ़ता तो शायद दंग रह जाता। कैसे आउट हो गया उसका लिखा प्रश्नपत्र! देवज्ञ की पुत्री थी इसीलिए क्या उसके बाबूजी ने उसकी कुंडली स्वयं नहीं बनाई? जिस रुद्रदत्त भट्टजी से कुंडली गणना के लिए दूर-दूर के राजे-महाराजे-ताल्लुकेदार आकर चिरौरी करते थे, उन्होंने क्या जन्मलग्न से ही पुत्री का भाग्य बाँच लिया था? ठीक ही तो था, कौन चिकित्सक अपनी सन्तान पर सर्जन की छुरी चलाने का दुःसाहस कर पाता है? अन्नपूर्णा कब की, अपनी कुंडली अपने पिता के अस्थिकलश के साथ कनखल में प्रवाहित कर चुकी थी, किन्तु वह पंक्ति अभी भी उसे ज्यों की त्यों याद थी-दैवज्ञ मार्तण्ड की पुत्री थी, ऐसी पंक्तियों का मर्म तो समझती ही थी।

क्रूरे हीन बलेस्तगे स्वपतिना, सौम्येक्षिते प्रोञ्झिता।

उसके अभिशप्त सप्तम स्थान स्थित निर्बली ग्रह पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं थी। ऐसे योगज ग्रह की स्त्री यदि परित्यक्ता न होती तो आश्चर्य की बात थी। पुत्री के इसी दुर्भाग्य के पश्चात उसके पिता ने उसे ससुराल से कई बुलावे आने पर भी नहीं भेजा-नहीं. वे सास. जेठ. जिठानी. देवरों की चाकरी करने पुत्री को वहाँ नहीं भेजेंगे, जो जी में आए कर लें, कोर्ट-कचहरी सबसे जूझ लेंगे वे। जिस हृदयहीन व्यक्ति ने अपनी बालिका पत्नी से ऐसी प्रवंचना की थी, उस जामाता को वे कभी क्षमा नहीं कर पाएँगे। यदि उसके सम्बन्ध, विवाह पूर्व किसी गणिका से थे, तो उसने उनकी निर्दोष लड़की का अँगूठा थामा किस दुःसाहस से? और तीन महीने उससे जी भर चाकरी करा क्यों अचानक, आधी रात को पितगह में पटक, पिछवाड़े क रास्त चार-सा भाग गया? दूसर ही दिन पंचायत बहीबार को देवता-सा पूजता था। उनके समृद्ध यजमानों में कमिशनर भी थे, डिप्टी भी- सबने एकमत से निर्णय लिया, उनके निर्लज्ज जामाता की मुश्कें बँधवाकर यहाँ बुलाया जाए और वह नाक नाक रगड़ पंडितजी से क्षमा याचना कर, ससम्मान उनकी पुत्री को अपने साथ ले जाए।

“नहीं” पन्द्रह वर्ष की अन्नपूर्णा ने पिता के पास आकर गर्वोन्नत मस्तक तनिक भी नहीं झुकने दिया, “मैं अब वहाँ कभी नहीं जाऊँगी।”

“क्यों बेटी? तुम्हारी माँ नहीं है, पिता, वृद्ध हो चले हैं, तीन भाई हैं, पर उनका अपना परिवार होगा, जीवन-भर तुम्हारा भार कौन लेगा?”

“तब देखिए,” कह उस वित्ते-भर की संकोची लड़की ने, जिसकी नग्न कुहनी भी शायद कभी किसी ने नहीं देखी थी, अपनी कुर्ती ऊपर उलट दी- नग्न, बताशे-सी सुकोमल दुग्धधवल पीठ पर लकड़ी के दागे गए लम्बे-लम्बे निशान थे।

“देख लिया आपने, अब किस मुँह से बिरादरी कहती है कि मैं वहाँ जाऊँ?”

“किसने किया यह? कौन था वह कसाई, बोल दीदी, मैं उसकी जान ले लूँगा।” उसका किशोर छोटा भाई देवेन्द्र बहन से लिपट गया-

“सबने मिलकर बारी-बारी से मुझे जली लकड़ी से मारा, जानते हो, क्यों? क्योंकि मुझे चार सलाइयों के मोजे बिनने नहीं आए और मैंने एड़ी की छाँट गलत कर दी…”

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Hindi

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2022

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