Kishkindha

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Author: Narendra Kohli

Availability: Out of stock

Pages: 120

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9788181435699

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

किष्किंधा

पात्र-परिचय

वाली : किष्किंधा का सम्राट्

सुग्रीव : युवराज, वाली के अनुज

तारा : वाली की पत्नी

रुमा : सुग्रीव की पत्नी

कटाक्ष : महामंत्री

अंगद : राजकुमार, वाली के पुत्र

जाम्बवान : सुग्रीव के सहयोगी

नील : सुग्रीव के सहयोगी

नल : सुग्रीव के सहयोगी

शिल्पी : सुग्रीव के सहयोगी

हनुमान : सुग्रीव के सहयोगी

तार : मंत्री, तारा के भाई

धूम्र : सुग्रीव के विरोधी-मंत्री

दुर्मुख : सुग्रीव के विरोधी-मंत्री

शगुन-विचारक : किष्किंधा राज्य का शगुन-विचारक

कोटपाल : नगर-कोटपाल

सेनिक : सैनिक-1

सैनिक : सैनिक-2

चंचला : प्रधान परिचारिका

 

दृश्य : 1

(राजसभा। तर, कटाक्ष, शगुन-विचारक अपने-अपने नियत स्थान पर बैठे हैं। सम्राट् के प्रवेश करते ही उठकर खड़े हो जाते हैं। सम्राट् सिंहासन ग्रहण कर, सबको बैठने का संकेत करते हैं। सभासद पुनः बैठ जाते हैं।)

वाली : महामंत्री !

कटाक्ष : सम्राट् !

वाली : राज्य का क्या समाचार है ?

कटाक्ष : सारी किष्किंधा सम्राट् के कल के वीर कृत्य पर उल्लसित है। एक-एक नागरिक अपने सम्राट् पर गर्व कर रहा है।

वाली : हुं।

(मौन)

तार : क्या बात है, सम्राट् कुछ स्वस्थ नहीं दीख रहे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि कल की भाग-दौड़ से सम्राट् को क्लांति का अनुभव हो रहा हो।

वाली : क्लांति ? एक वन्य भैंसे दुंदुभि के आखेट से क्लांति हो गई ? हुं। हम सुग्रीव के समान कोमल नहीं हैं। हम वाली हैं।

कटाक्ष : निःसंदेह। सम्राट् विकट वीर हैं और सम्पूर्ण वानर राज्य में सम्राट् का शारीरिक बल और युद्ध-कौशल किंवदंतियों का रूप ले चुका है।

वाली : हुं। शगुन-विचारक !

शगुन-विचारक : सम्राट् !

वाली : अपने कल के इस वीर कृ्त्य पर हम आपकी प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक हैं।

शगुन-विचारक : राजन् !…

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2016

Pulisher

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