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नागार्जुन की काव्य भाषा
काव्य–भाषा कविता की मूल पहचान है। वह उसकी देह भी और आत्मा भी ! कवि काव्य–वस्तु को काव्य–भाषा में ढालता है और पाठक/श्रोता भाषा के सहारे काव्य–वस्तु तक पहुँचता है। भाषा की बुनावट का अध्ययन करना ही कविता का अध्ययन करना है। कविता की भाषिक बनावट की उपेक्षा करके केवल अर्थ तथा विषय–वस्तु पर बात करना पर्याप्त नहीं है। एक ही विषय पर अनेक कवियों ने लिखा है, मगर उन कवियों के महत्त्व का निर्धारण भाषिक बनावट के आधार पर अंततः किया जाता है। प्रगतिशील कवियों ने विषय–वस्तु के चयन पर ज़ोर दिया और कविता के कला–पक्ष को थोड़ा पीछे रखना चाहा। मगर वास्तविकता यही थी वे स्वयं भी नए ढंग से काव्य–भाषा की रचना कर रहे थे। नागार्जुन की काव्य–भाषा के वैशिष्ट्य को इन पक्षों के माध्यम से समझा जा सकता है।
- चार भाषाओं में काव्य रचना – हिन्दी, मैथिली, बाँग्ला और संस्कृत।
- आधुनिक हिन्दी कवियों में नागार्जुन ने मुहावरों का सर्वाधिक प्रयोग किया है।
- व्यंग्यात्मक काव्य–भाषा रचने में वे अग्रणी हैं।
- स्वतंत्र भारत की आधी शताब्दी के जन–आन्दोलनों को कविता में व्यक्त करने की भाषा का सृजन नागार्जुन की विशिष्ट पहचान है।
- सतही, अखबारी और तात्कालिक लगनेवाली भाषा को काव्य–भाषा में ढालने की सामर्थ्य।
- छन्द के परंपरागत रूपों से लेकर बिना छन्द की कविता रचते हुए वे काव्य–भाषा के अनेक स्तरों को प्रस्तुत करते हैं।
- राष्ट्रभाषा हिन्दी, दूसरे जनपद की भाषा बाँग्ला, शास्त्रीय भाषा संस्कृत और मातृभाषा मैथिली की काव्य–भाषा ने नागार्जुन की काव्य–भाषा को परस्पर प्रभावित किया।
- सघन तत्सम से लेकर सतही भाषा तक को काव्य–भाषा में ढालने की विराट चेष्टा नागार्जुन की पहचान है। वे अपनी कविता के साथ जनता के बीच खड़े होने की योग्यता रखते हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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