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Description
नये इलाके में
वैसे तो हर कविता शुरू से अंत तक एक नये इलाके की खोज है, जीवन में जो कुछ घट रहा है उसका अन्वेषण और उसके आधार पर एक नये काव्य-सत्य का आविष्कार। अरुण कमल का यह तीसरा संग्रह भी इसी संकल्प के साथ प्रस्तुत है। जैसा कि पाठक स्वयं देखेंगे ये कविताएँ पहले संग्रहों की कविताओं से संबद्ध होकर भी उनसे अलग हैं क्योंकि यहाँ एक नयी कोशिश मिलती है जीवन को देखने समझने की, एक गहरा नैतिक बोध जो पहले इतना मुखर नहीं था। यहाँ कुछ भी स्वयंसिद्ध जैसा नहीं है, न ही पहले से तै या अनुमानित। अब प्रत्येक पंक्ति एक आशंका और हिचक से आगे बड़ती है मानो अनजान दुर्गम कोनों खोहों में चल रही हो। यह नया इलाका स्थूल अर्थों में सामाजिक-राजनीतिक नहीं, हालाँकि यह सही है कि पूरा तात्पर्य पाने के लिए पिछले वर्षों में हुए विभिन्न बाह्य परिवर्तनों को ध्यान में रखना जरूरी होगा, लेकिन ये कविताएँ वहीं तक सीमित नहीं हैं, अपने उठान और प्रसार में ये नये अर्थ प्रक्षेपित करती हैं। ये जीवन के आवरण की नहीं, बल्कि अस्तर की कविताएँ हैं।
नये इलाके में वास्तव में एक कविता का, पहली ही कविता का, शीर्षक है जो एक अर्थ में पूरे संग्रह का मानचित्र भी माना जा सकता है, एक ऐसी दुनिया में प्रवेश का आमंत्रण जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है, जहाँ स्मृति का भरोसा नहीं। और इसी के साथ शुरू होती है निर्मम जाँच-पड़ताल जो सम्पूर्ण सभ्यता के प्रवाह पर टिप्पणी करती हुई आगे बढ़ती हैं। अरुण कमल के पहले दो संग्रहों में भी जीवन के अनेक पक्ष उपस्थित रहे हैं; बल्कि यह कहना अनुचित न होगा कि आज वह उन थोड़े से कवियों में हैं जिनके यहाँ अप्रत्याशित विस्तार है, सब कुछ का समावेश- ‘जितनी भी है दीप्ति भुवन में सब मेरी पुतली में कसती’।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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