Pank Se Pankaj Arthaat Maharshi Valmike Kathamrt

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Pank Se Pankaj Arthaat Maharshi Valmike Kathamrt

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125.00 105.00

In stock

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Author: Tejpal Singh Dhama

Availability: 5 in stock

Pages: 120

Year: 2008

Binding: Paperback

ISBN: 8188388610

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

पंक से पंकज अर्थात महर्षि वाल्मिकी कथामृत

प्रकाशकीय

महर्षि वाल्मीकि कथामृत ही क्‍यों ?

कई बार लोगों ने महर्षि वाल्मीकि पर पुस्तक मांगी, परन्तु विस्तृत जीवनी या उन पर रोचक उपन्यास अनुपलब्ध होना एक बहुत बड़ा कारण है इस विषय में श्री धामा से लिखवाने का। परन्तु लोग तो बहुत तरह की पुस्तकें मांगते हैं और उसमें से बहुधा उपलब्ध नहीं होती। उन सभी की ओर मेरा ध्यान क्यों नहीं गया ? यह वास्तव में सोचने वाली बात है !

गत 25 या अधिक वर्षों से सभी राजनीतिक दल महर्षि वाल्मीकि का नाम लेकर उनके अनुयायियों से वोट या नोट मांगते रहे हैं। उनके अनुयायियों द्वारा मनुवादी शब्द एक गाली की तरह प्रयोग होता है।

क्या वास्तव में मनुवादी इतने बुरे हैं कि आजादी के छह दशक बाद भी वे इस संबोधन से अपना सिर शर्म से झुका लेते हैं। कभी किसी युग में ब्राह्मणों द्वारा किये गये भेदभाव के बारे में बता-बताकर आज सभी अनुसूचित जातियों को भड़काया जाता है और गैर अनुसूचित जातियों के हक को ठीक उस तरह मारा जाता है जैसे एक नदी में शेर के साथ ही जल पीने के कारण छह माह के मेमने को जान गंवानी पड़ी थी, क्योंकि उसकी शक्ल उस बकरी से मिलती-जुलती थी, जिसने कुछ वर्ष पहले नदी का पानी शेर के आने से पहले जूठा कर दिया था।

अतः हम कह सकते हैं कि डिवाईड एंड रूल गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद काले अंग्रेजों का हथियार हो गया है।

इन्हीं मनुवादियों ने डाकू रत्नाकर को महर्षि या ब्रह्मर्षि कहा तो क्‍यों ? क्या उनकी जाति के कारण या युवा अवस्था के अनैतिक कार्यों के कारण उनके सम्मान में कहीं कमी दिखायी ? क्या कभी भी उस आदि कवि द्वारा लिखित ग्रंथ रामायण को ब्राह्मण तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरित मानस से कम श्रद्धा दी गयी ? क्या  कभी उनके आश्रम में रही सीता को अछूत माना गया ? क्‍या उनके पालित लव और कुश को किसी भी मनुवादी ने हेय माना ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं ही है। तो फिर मनुवादी के साथ भेदभाव क्‍यों ? शायद इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए परम श्रद्धेय वाल्मीकि की कथा मन को भा गयी, जो यह स्वयंमेव ही सिद्ध करती है कि प्राचीन आर्यावर्त, भारत या हिन्दुस्तान में जातिव्यवस्था कर्म पर आधृत थी न कि जन्म के समय कुल या गोत्र पर। आधुनिक मनुस्मृति में या उसकी व्याख्या में कहीं कुछ भूल अवश्य है। महर्षि वाल्मीकि के बारे में विवरण न में मिलते हैं। कई घटनाएं मन को झंझकोरती हैं। शंख मुनि के भाई मुनि के कटे बाजू के ठूंठ से हाथ पुनः उग आना। इसी प्रकार राजकुमारी नयनतारा द्वारा जिद करके अपनी आँखें ऋषि को देना। इसी तरह की एक और घटना पुराणों में आती है कि सीता जी की एक ही संतान थी लव। एक बार सीताजी को कूटिया के बाहर अपना कुछ कार्य करना था। वह लव को ऋषि के पास खेलता छोड़ आयी। अचानक यह ध्यान आया कि लव के रोने से ऋषि के कार्य में खलल पड़ेगा, तो वह चुपके से लव को उठा लायी।

थोड़ी देर बाद ऋषि की समाधि टूटी, वह लव को न देखकर सोचने लगे कि कहीं कोई वन्य जीव उसे उठाकर न ले गया हो। यह सोचकर उन्होंने कुश घास द्वारा एक पुतला ठीक लव का प्रतिरूप बनाया। योग विद्या से उसमें आत्मा का आह्वान किया। यही बालक सीताजी को उनकी दूसरी संतान कुश के रूप में मिला।

क्या यह संभव है ? क्‍या ये सभी कथाएँ उस समय के विज्ञान (अथर्ववेदीय चिकित्सा व सुश्रुत संहिता) को अति उन्नत सिद्ध नहीं करती ?

इस तरह की कथाओं का समावेश इस उपन्यास में कर वैज्ञानिक आधार देने का प्रयास किया गया है। यह ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि की कथा पर आधारित उपन्यास है। उपन्यास में रोचकता के लिए लेखक अपने पात्रों से बहुत कुछ कहलवाता या करवाता है, परन्तु मूल कथा से छेड़छाड़ न हो ऐसा प्रयास किया गया है।

पद्मेश दत्त

प्रकाशक

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2008

Pulisher

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